Pushpendra Pal Singh Memory :जिंदगी जीने के रंग सिखा गए पीपी सर

भोपाल . पीपी सर, (Pushpendra Pal Singh Memory )एक ऐसा कालजयी व्यक्तित्व जिसकी अनेक कहानियाँ है । एक शिक्षक के तौर पर, एक मित्र के तौर पर और एक जिंदादिल इंसान के तौर पर उनसे जो भी जुड़ा वो उनका हो गया और पीपी सर उनके हो गए ।  इन सभी रिश्तों में किसी के साथ भी उनका लेश मात्र का भी स्वार्थ नहीं रहा, हर किसी के लिए हर समय तत्पर रहने वाले एक बेजोड़ इंसान थे पीपी सर ।
हम छात्रों के लिए वो एक बाबा की तरह थे और हम सब उन्हे प्यार से बाबा बुलाते भी थे । बाबा जिससे जितना चाहे ज्ञान बटोर लो, बाबा जो आपका एक अभिभावक है, बाबा जो आपके वर्तमान और भविष्य दोनों की चिंता कर रहा है ।  इस बाबा (पीपी सर) के हर छात्र के साथ अपने किस्से है, अपनी कहानियाँ है और किस्से कहानियाँ भी ऐसे जो शुरू हो तो खत्म होने का नाम न ले । बाबा जो कल तक हमारी आँखों के सामने थे, हमारे मार्गदर्शक थे,  आज वे हमारी यादों में अमर हो गए । बाबा का एक पसंदीदा गाना था, जिसे वे हमेशा गुनगुनाते थे-  एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल । आज उनके जाने के बाद इस गाने की एक एक लाइन उनके छात्रों के अंदर अजर अमर हो गई है ।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे बाबा के छात्र होने का भी गौरव प्राप्त हुआ और वर्तमान दायित्व पर मुझे पीपी सर के साथ काम करने का भी अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त हुआ । दोनों अनुभव से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।

 

बहुत कुछ सीखा जा सकता है

एक पत्रकारिता के शिक्षक (Pushpendra Pal Singh )के तौर पर उन्होंने जो पहला पाठ हम छात्रों को सिखाया कि पत्रकारिता, क्लास रूम में बैठकर नहीं सीख सकते है, आपको फील्ड पर जाना होगा और पहले सेमेस्टर से ही भोपाल में होने वाली अनेकों गतिविधियों (राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, क्राइम इत्यादि ) में छात्र की रुचि के अनुसार उसे कव्हर करने के लिए सर भेज देते थे । देर शाम जब दूसरे डिपार्टमेंट बंद हो जाते थे तब पीपी सर की क्लास शुरू होती थी और वो बोलते थे ले आओ अपनी अपनी कॉपी, अपनी अपनी रिपोर्टिंग, क्या देखा क्या लिखा, बड़ी बारीकियों से हम सभी को पत्रकारिता सिखाते और सिखाने का दौर भी ऐसे नहीं चलता , बच्चों के साथ गप्पे, रात का खाना और रिपोर्टिंग की बारीकियाँ एक टेबल पर एक साथ होती थी ।

 छात्रों ने एमसीयू में एडमिशन लिया
दूसरी बात जो उन्होंने सिखाई कि पूर्वाग्रह से बचो, अपने अनुभव पर आगे बढ़ो और डटे रहो । बाबा ने हम पत्रकारिता के छात्रों को सिखाया कि पढ़ना और लिखना दोनों को अब अपना जीवन बना लो ।  सब कुछ पढ़ो और लिखो ।  बाबा से एक बात और सीखी कि सभी के लिए खुले दिल से आगे आओ, जो आज के दौर पर असंभव सा लगता है लेकिन ये बात सर ने अपने आचरण से सिखाई , वे कभी एम जे के एचओडी या शिक्षक बन कर नही रहे, वे सभी के थे और सब उनके । दूसरे डिपार्टमेंट के छात्रों में एक टीस भी अक्सर देखने मिलती थी कि पीपी सर उनके एचओडी क्यूँ नहीं है ? पीपी सर एक दौर में माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय का चेहरा बन गए थे, उनके नाम पर और उनसे पत्रकारिता सीखने के लिए अनेक छात्रों ने एमसीयू में एडमिशन लिया ।

निर्माण की बिक्री में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी दर्ज की गई
प्रशासकीय अनुभव जो उनसे हमने बतौर उनके सहयोगी के तौर पर सीखा कि पीपी सर, परिश्रम की पराकाष्ठा के पर्याय थे । सर को जब माध्यम में नई जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने इसे एक चलेंज के तौर पर लिया, किसी कार्य को करने के लिए प्रोफ़ेशनेलिज़्म क्या होती है यह उनसे सीखी जा सकती है।  पहला टास्क उन्हे मिला, रोजगार और निर्माण समाचार पत्र जिसका कंटेन्ट समयानुरूप नहीं रह गया था, बिक्री भी लगातार नीचे जा रही थी,  उसे एक नया स्वरूप पुष्पेंद्र सर ने दिया, कंटेन्ट को रुचिकर बनाया, विषय विशेषज्ञों को समाचार पत्र से जोड़ा, सम-सामयिक विषयों पर आलेखों की झड़ी लगा दी ।  पत्रकारिता के छात्रों को रोजगार और निर्माण से जोड़कर वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुरूप अखबार को नया कलेवर दिया और देखते ही देखते रोजगार और निर्माण की बिक्री में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी दर्ज की गई । 

संबंध बड़े मजबूत थे
माध्यम में उनके काम के आधार पर सर को एक के बाद एक जिम्मेदारी मिलती गई, वे यहाँ भी अब माध्यम तक सीमित नहीं रहे, उन्हे जनसम्पर्क और मुख्यमंत्री कार्यालय के भी काम उन्हे दिए गए जो उन्होंने अपनी लगन, मेहनत और विजन के साथ पूरे किए । माध्यम से लेकर जनसम्पर्क और जनसम्पर्क से लेकर शासन के अनेक विभागों के कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ उनके संबंध बड़े मजबूत थे और अपने व्यवहार के अनुरूप शासकीय एवं व्यक्तिगत कार्यों में वे सदैव सबकी मदद के लिए तैयार रहते थे । संबंधों को कैसे निभाना है और उनमें जोश और जिंदादिली कैसे रखनी है, इसके अनेकों उदाहरण पीपी सर ने अपनी कार्यशैली और आचरण से सिखाया । 
पीपी सर हर किसी के दोस्त थे, राजनैतिक क्षेत्र में क्या पक्ष क्या विपक्ष, सब के लिए थे पीपी सर । कला, संस्कृति, विज्ञान, खेल सहित सभी विधाओं के प्रतिष्ठित लोगों से सर के संबंध थे ।  उन्होंने संबंध निभाना और संबंध जीना सिखाया ।  पीपी सर सिर्फ पत्रकारिता के गुरु नहीं थे, वे अपने आप में एक संस्थान थे ।  बाबा ने, सिर्फ पत्रकारिता नहीं सिखाई, कलम चलाना, कैमरा चलाना और प्रिन्ट- इलेक्ट्रॉनिक- सोशल मीडिया की बारीकियाँ ही नहीं सिखाई बल्कि उन्होंने हमें सिखाया परिश्रम करना, उन्होंने हमें सिखाया सबसे प्यार करना, उन्होंने हमें सिखाया आगे बढ़ना, उन्होंने हमें सिखाया हर चुनौती को स्वीकार करना, उन्होंने हमें सिखाई जीवन की पाठशाला और जिंदगी जीने के रंग  । 
अश्रूपूरित श्रद्धांजलि के साथ ..... 

 PP SIR Memory in Hindi
                                                            सत्येन्द्र खरे

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