NPA और कर्ज वसूली के नए नियमों से सरकार व रिजर्व बैंक में बढ़े मतभेद

नई दिल्ली। अभी तक सरकार और बैंकिंग सेक्टर के नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के बीच विवाद अमूमन ब्याज दरों और वित्त मंत्रालय तक ही सिमटा हुआ था। लेकिन अब आरबीआइ के अधिकारों और क्रियाकलापों को लेकर कुछ और मंत्रालयों की शिकायतें भी सामने आने लगी हैं। पीएनबी घोटाले के बाद नियामक एजेंसियों के अधिकार को लेकर पहले वित्त मंत्रालय और आरबीआइ के बीच विवाद शुरू हुआ। अब फंसे कर्ज (एनपीए) की वसूली के नये नियमों को लेकर एक साथ वित्त व बिजली मंत्रालय ने आरबीआइ को आड़े हाथों लिया है।

और बढ़ सकती है तल्खी-

दोनों पक्षों में यह तल्खी आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है क्योंकि केंद्रीय बैंक ने एनपीए नियमों में कोई राहत देने से फिलहाल मना कर दिया है। आरबीआई ने पिछले दिनों एनपीए की वसूली को लेकर नए नियम जारी किए हैं, जिसको लेकर उद्योग जगत के साथ ही बैंकिंग जगत में भी सनसनी फैली हुुई है।

आरबीआई के नए नियमों के तहत कर्जदारों को कर्ज चुकाने के लिए ज्यादा वक्त देने या कर्ज की राशि को संशोधित करने के तत्कालीन छह नियमों को पूरी तरह से निरस्त कर दिया गया है।आरबीआई ने बैंकों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि एनपीए घोषित सभी खातों को 180 दिनों के भीतर कर्ज वसूलने के नए नियम में ट्रांसफर किया जाए। साथ ही इन खातों पर इंडियन बैंकिंग कोड (आइबीसी) के तहत कार्रवाई की जाए।इस नियम को लेकर अफरा-तफरी का इस कदर आलम है कि एक तरफ बैंकों ने वित्त मंत्रालय के पास गुहार लगाई है कि इससे उनकी समस्या घटने के बजाये और बढ़ेगी, क्योंकि यह एनपीए की राशि में दो लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी और कर देगा।

दूसरी तरफ देश की 25 बड़ी बिजली कंपनियों ने केंद्रीय बिजली मंत्रालय से शिकायत की है कि एनपीए वसूली के नए नियम से निजी क्षेत्र की 60 फीसद बिजली कंपनियों का भविष्य अधर में फंस गया है। इसकी वजह यह है कि नए नियम के मुताबिक कर्ज चुकाने में अगर एक दिन की भी देरी हो जाती है तो कंपनी पर बैंकों के काबिज होने का रास्ता खुल जाएगा।बिजली राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आर. के. सिंह ने उन्हें आश्वासन दिया है कि इस अनिश्चितता को खत्म करने के लिए वे आरबीआइ गवर्नर और वित्त मंत्री अरुण जेटली से बात करेंगे। सरकारी सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों वित्त मंत्रालय के बड़े अधिकारियों की इस बारे में आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल से बात हुई थी। इसमें आरबीआई की तरफ से नए नियमों में नरमी बरतने का कोई संकेत नहीं दिया गया।

सरकार और आरबीआई में पहले से था मतभेद-

सरकार और आरबीआइ के बीच बैंकों पर नियंत्रण के अधिकार को लेकर पहले से ही अंदरखाने में काफी तनाव चलता रहा है। लेकिन पीएनबी घोटाले के बाद यह मामला खुल कर सामने आ गया है।

पटेल ने इस घोटाले के लिए परोक्ष तौर पर आरबीआई को मिले सीमित अधिकार को जिम्मेदार ठहराया था। उनके इस बयान के एक ही दिन बाद वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरबीआई ने अगर अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया होता, तो पीएनबी में हुए फ्रॉड को रोका जा सकता था।

इसी तरह पिछले वर्ष जनवरी में वित्त मंत्री ने खुल कर कहा था कि ब्याज दरों को कम किया जाना चाहिए, लेकिन आरबीआइ ने उन्हें नजरंदाज कर दिया।

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