बस्ते का बोझ कम होने के साथ ही जरूरी है “बच्चों” के लिए शारीरिक शिक्षा

वर्तमान सरकार द्वारा बच्चों के बस्ते का बोझ हल्का करने की बात लगती तो है एक सपने जैसी पर सुनने मे हमारे देश के अभिभावकों को शायद बहुत सुखद लगी है ! किताबो के बेजा बोझ ने बच्चो से केवल उनका बचपन ही नही छीन लिया बल्कि उनके सर्वांगीण विकास को भी रोक दिया है ! जिस उम्र मे आज के 26/27 साल पहले हम स्कूल मे बेफिक्री वाली पढ़ाई किया करते थे,फुटबाल, कबड्डी, पीटी, बैडमिंटन, रेस आदि मे लगभग रोज भाग लिया करते थे और शारीरिक, मानसिक दोनो स्तर पर फिट एवम प्रसन्न रहा करते थे, तनाव का कही नामोनिशान नही होता था, आज उस उम्र मे ही बच्चा तनाव की चपेट मे है न बच्चे का शारीरिक विकास हो रहा है न ही उसका मानसिक विकास हो रहा है,

आश्चर्य की बात तो यह है कि उसके इस तनाव को कम करने के प्रयास निरर्थक होते नजर आने लगे है मैने स्वयम अपने 10 साल के भांजे की दिनचर्या को वॉच किया है वह शहर के एक फेमस मिशनरी स्कूल में क्लास 5th का स्टूडेंट है एक अच्छे विद्यार्थी के साथ साथ वह बैडमिंटन भी बहुत अच्छा खेलता है अन्तर स्कूल कम्पटीशन मे कई बार वह चैम्पियन रहा है पर उसके सामने संकट यह है कि वो बैडमिंटन खेले कब क्योकि स्कूल मे तो वर्ष के अक्टूबर माह मे 15 दिन स्पोर्ट डे चलता है वह भी दो घण्टे की कागजी औपचारिकता वाले फार्मूले पर इसके बाद वर्ष भर कोई गेम कोई पीटी कोई खेल नही केवल लेन्दी थकाऊँ पढ़ाई, एक बच्चा जो भविष्य मे बैडमिंटन का अच्छा प्लेयर हो सकता है उस बच्चे को स्कूल वर्ष भर केवल बोझिल, थकाऊँ पढ़ाई करवा रहा है ! 

खेल एवं शारीरिक शिक्षा के प्रति स्कूलो की उदासीनता के चलते बच्चों का बचपन लुप्त होने लगा है ! आज के दौर की बेहद दूरूह, बेहद जटिल स्थिति में वर्तमान भारत सरकार ने स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम का बोझ कम करने का जो फैसला किया है निःसन्देह हम सबको खुले मन से उसका स्वागत करना चाहिए। भारत सरकार के वर्तमान केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीते शनिवार 24 नवम्बर को कहा है कि एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम बेहद जटिल है और सरकार इसे घटाकर आधा करने वाली है। निश्चित ही हमारे बच्चो के विकास के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी अगर बच्चों को उनका बचपन लौटाने की यह पहल सरकार द्वारा केवल समाचार एवम कागजी कार्वाही तक ही सिमित न रह कर वास्तविक धरातल पर मौलिक रूप से मूर्त होगी तो ! 


जिस तरह सरकार बच्चो के बस्ते का बोझ कम करने की पहल कर रही है उसे बच्चो के शारीरिक विकास के लिए भी सोचना होगा, आज स्कूलो मे शारीरिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी सरकार को पहल करने की जरूरत है क्योकि वर्तमान स्कूली शिक्षा व्यवस्था में बच्चो के लिए शारीरिक शिक्षा का कोई स्थान तय नही है जबकि बच्चो के लिए शारीरिक शिक्षा “Physical Education” कितनी जरूरी है यह हम विवेकानन्द जी के शब्दों में कहीं बेहतर समझ सकते हैं यथा : शारीरिक शिक्षा के प्रति बच्चों एवम युवाओं को जागरूक करते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने इनकी अपने राष्ट्र भारत से आग्रह किया है, सम्पूर्ण राष्ट्र को सुंदर संदेश दिया है यथा :

“अनन्त शक्ति ही धर्म है, बल पुण्य है और दुर्बलता पाप, सभी पापों और सभी बुराइयों के लिए एक ही शब्द पर्याप्त है और वह है दुर्बलता, आज हमारे देश को जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह है लोहे की मांसपेशियां और फौलाद के स्नायु, दुर्दमनीय प्रचंड इच्छाशक्ति, जो सृष्टि के गुप्त तथ्यों और रहस्यों को भेद सके चाहे उसके लिए समुद्र तल में ही क्यों न जाना पड़े, साक्षात् मृत्यु का सामना ही क्यों न करना पड़े । मेरे नवयुवक मित्रों बलवान बनो, तुम सब को मेरी सलाह है कि : गीता के अभ्यास की अपेक्षा फ़ुटबाल खेलने के द्वारा तुम स्वर्ग के अधिक निकट जाओगे क्योकि फुटबाल खेलने से तुम्हारी कलाई और भुजाएं अधिक सुदृढ़ होगी, कलाई और भुजाएं अधिकं सुदृढ़ होने पर तुम गीता को कही अधिक अच्छी तरह समझोगे, तुम्हारे रक्त में शक्ति की मात्रा बढ़ने पर तुम श्रीकृष्ण की महान प्रतिभा और अपार शक्ति को अच्छी तरह समझने लगोगे। तुम जब अपने पैरों पर दृढ़ता के साथ खड़े होओगे और तुमकों जब प्रतीत होगा कि हम मनुष्य है, तब तुम उपनिषदों को और भी अच्छी तरह समझोगे और तब आत्मा की महिमा को जान सकोगे।”


वैदिक काल मे भी भारत मे बच्चो की शारीरिक शिक्षा पर विशेष बल दिया गया था उद्दाहरण स्वरूप :
“शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्”
शरीर समस्त धर्म का साधन है, हमारी ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम भी है हमारा शरीर । एक स्वस्थ काया “शरीर” में ही स्वस्थ मन निवास करता है । जीवन के सुख के लिए स्वस्थ मन आवश्यक है । इस स्वस्थ मन के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है और शरीर के स्वस्थ्य होने के लिए शारीरिक शिक्षा अति आवश्यक है ! मनोविज्ञान भी इस सत्य की पुष्टि करता है कि : शारीरिक शिक्षा द्वारा बच्चो के भीतर की कुंठाएं, घुटन, निराशा, आदि खेल की मस्ती में घुल जाती है एवम बच्चे अपनी पढाई पर ताजगी के साथ केन्द्रित होते हैं ! प्राचीन काल से भारत में यह कथन प्रसिद्ध है कि : एक बहुबल रक्षित राष्ट्र ही शास्त्र का चिंतन कर सकता है, यहां शास्त्र से मेरा आशय शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में है !

कलम से : अर्चिता

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