गठबंधन बना राजनीति का पहला और आखिरी सबक

16 मई, 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में पदभार तो संभाल लिया, पर असली परीक्षा अभी बाकी थी। वाजपेयी को लोकसभा में बहुमत साबित करना था। विपक्ष वाजपेयी सरकार को धराशायी करने पर उतारु था। दोनों तरफ से सांसदों को अपने पाले में करने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे थे। 29 मई को सरकार को विश्वासमत हासिल करना था।


सरकार के समर्थन में पर्याप्त संख्या नहीं जुट पाई तो वाजपेयी ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोर्चा के एच.डी. देवेगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद संभाला। सरकार कांग्रेस के समर्थन से चल रही थी, लेकिन चंद दिनों में ही ऐसी स्थितियां पैदा हो गईं कि टकराव नजर आने लगा। आखिर दस महीने के भीतर ही देवेगौड़ा सरकार भी धराशायी हो गई। लोकसभा चुनाव को अभी सालभर भी पूरा नहीं हुआ था, लिहाजा कोई दल मध्यावधि चुनाव नहीं चाहता था। नए प्रधानमंत्री की तलाश शुरू हुई। मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव भी दौड़ में शामिल थे। आखिर इन्द्रकुमार गुजराल के नाम पर सहमति बनी। लेकिन गठबंधन सरकारों के कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने के अभिशाप ने गुजराल का भी पीछा नहीं छोड़ा और महज नौ महीने सत्ता में रहने के बाद

ही उनकी सरकार भी गिर गई। अब मध्यावधि चुनाव के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था। दो साल के भीतर ही देश में फिर चुनाव की डुगडुगी बज गई। फरवरी-मार्च, 1998 में चुनाव हुए। एक तरफ वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा नीत राजग का उदय हुआ, जिसमें अन्नाद्रमुक, समता पार्टी, बीजेडी, अकाली दल, शिवसेना, पीएमके और एमडीएमके जैसे दल शामिल थे, तो दूसरी ओर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष भाजपा के सामने था। जनता दल, वामदल, द्रमुक, तमिल मनीला कांïग्रेस, असम गण परिषद और केरल कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल संयुक्त मोर्चा के बैनर तले चुनावी समर में अपना-अपना भाग्य आजमा रहे थे। परिणाम आए तो एक बार फिर किसी भी गठबंधन को बहुमत नहीं मिल पाया। हालात 1996 जैसे ही नजर आ रहे थे। एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभर कर आया था। भाजपा हो या कांग्रेस, क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन राजनीति का अहम सबक बन चुका था। वाजपेयी ने एक बार फिर सरकार बनाने का दावा पेश किया और 22 महीने बाद ही उन्होंने 19 मार्च 1998 को फिर से प्रधानमंत्री पद संभाल लिया।

औंधे मुंह गिरा जनता दल
पिछले चुनाव में 46 सीटें जीतने वाला जनता दल इस चुनाव में औंधे मुंह गिरा। दो-दो सरकारों के गिरने के बाद हुए चुनाव में पार्टी सिर्फ छह सीटें ही हासिल कर पाईं। जनता दल टुकड़े-टुकड़े हो गया था। बिहार में जनता दल (यू) तो उड़ीसा में बीजू जनता दल के रूप में सामने आया। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल के रूप में इसने अपनी पहचान बनाई। कह सकते हैं कि इस चुनाव के बाद जनता दल विलुप्त हो गया।

22 महीने, 3 पीएम
1996 में चुनाव के बाद 22 महीने में देश ने तीन प्रधानमंत्री देखे। 16 मई 1996 को वाजपेयी ने पीएम पद की शपथ ली और 29 मई को इस्तीफा दे दिया। एक जून 1996 को पीएम बने देवेगौड़ा 324 दिन तक पद पर रहे। 21 अप्रेल 1997 को पीएम बने गुजराल को 332 दिन कुर्सी पर रहने का मौका मिला। - अनंत मिश्रा

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