कला परम्परा का नाम है जनगण

लेखक - मनोज कुमार (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया शिक्षा से सम्बद्ध हैं)

जनगण श्याम एक लोक कलाकार का नाम नहीं है और ना ही वह समय के साथ हम हो जाने वाला कलाकार है। जनगण एक लोक की परम्परा का नाम है। एक ऐसा नाम जो लोक का प्रतिनिधित्व करता है और कालजई कलाकार के रूप में हमारे बीच आज भी उपस्थित हैं। एक गुमनाम गांव पाटनगड से अपनी कल्पना के साथ वो राजधानी भोपाल आया था। उसे तो इस बात की खबर भी नहीं थी कि आने वाले दिनों में गोंड प्रधान चित्र शैली का वह परम्परा बन जायेगा। लेकिन आज जनगण उसी लोक चित्र शैली का वाहक है, नायक है। 

80 के दशक में जनगण का भोपाल आना हुआ था। इसी दौर में कला घर भारत भवन आकार ले रहा था।जनगण की मुलाकात यहीं पर कला गुरु स्वामीनाथन से हुई। कहते हैं हीरे की कीमत पारखी को होती है और पारखी ने जनगण को चिन्ह लिया। भारत भवन के नगीनों में एक नाम जनगण का भी जुड़ गया।जनगण की कला में मौलिकता थी और लोक की खुशबू। एकदम नयापन था। खासतौर पर उस समाज के लिए लोक का इस तरह आना एक किस्म का नया अनुभव एवं अनुभूति थी। चटक रंगों से सजे कलाकृति बरबस मन मोह लेती थी। आधुनिक कला समाज अनजाने में लोक के साथ चलने लगी। दबे पांव पाटनगढ़ की कला दिल्ली पहुंच गई। और अब का कल तक कागज पर उकेरी गई चिड़िया उड़ कर विदेशियों का मन मोह लिया।जनगण की कला परवान चढ़ रही थी कि इसी बीच जनगण हमसे हमेशा हमेशा के लिए बिछड़ गए।जनगण भौतिक रूप से हमसे ज़रूर जुदा हो गए लेकिन अपने पीछे पूरा कुनबा छोड़ गए। एक परम्परा की जो नींव जनगण ने रखी थी, आज उस परम्परा को आगे बढ़ाने वाला उनका पूरा कुनबा जुटा हुआ है।जनगण का सम्मान तब हुआ जब उनके खानदान के चिराग मयंक को राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया। उनके कुनबे से कई श्रेष्ठ कलाकार निकले जिनका डंका दुनिया में बज रहा है लेकिन उनकी पहचान जनगण से ही है।

गोंड जनजाति कला की बात करते हैं तो आदिवासी दुनिया हमारे सामने साकार हो जाती है। यह शायद पहली बार हुआ है कि एक ही जनजाति की लोककला को एक ही कुनबे के लोग शिद्दत से आगे बढ़ा रहे हैं। संसार में जनगण का नाम रोशन कर रहे हैं। अमूमन लोक कला को इतना बड़ा केनवास शायद पहली बार मिला है। एक कलाकार एक परम्परा बनकर कायम रहे, यह मिसाल है। आज जनगण को याद करते हुए कई बातें स्मृति पटल पर उभर आती हैं जिसमें जनगण की वो सादगी, वह ठेठ देहातीपन लेकिन कला गुरु के रूप में एक प्रतिबद्ध लोक कलाकर जिसने अपने अनजान और अन चीन्हें से गांव को पहचान दिलाने, अपने मध्यप्रदेश को सम्मान दिलाने वाले कलाकार के रूप में याद किए जाएंगे।

 

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