महिला सशक्तिकरण के लिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का योगदान

हिरोशिमा और नागासाकी के विध्वंस के बाद सारे संदर्भ ही बदल गये। आत्मसमर्पण के उपरान्त जापान चार-पाँच वर्षों तक अमेरिका के पाँवों तले कराहता रहा। यही कारण था कि नेताजी और आजाद हिन्द सेना का रोमहर्षक इतिहास टोकियो के अभिलेखागार में वर्षों तक पड़ा रहा।

जैसा की हम सब परिचित है नवम्बर 1945 में दिल्ली के लाल किले में आजाद हिन्द फौज पर चलाये गये मुकदमे ने नेताजी के यश में वर्णनातीत वृद्धि की और वे लोकप्रियता के शिखर पर जा पहुँचे। अंग्रेजों के द्वारा किए गये विधिवत दुष्प्रचार तथा तत्कालीन प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा सुभाष बाबू के विरोध के बावजूद सारे देश को झकझोर देने वाले उस मुकदमे के बाद अर्चिता तुम्हारे देश की माताएँ अपने बेटों का नाम ‘सुभाष’ रखने में गर्व का अनुभव करने लगीं। 
1945 भारतीय इतिहास का वह काल खण्ड है जो केवल सुभाष बाबू के के नाम से जोडकर ही पूरा किया जा सकता है ! एक ऐसा दौर जब मेरे देश के घर–घर में राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ साथ घर की दीवार पर नेताजी का चित्र भी चस्पा हने लगा।


यह पूर्ण सत्य है कि : आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का दूरदर्शी प्रयास प्रत्यक्ष रूप से सफल तो नहीं हो सका किन्तु उसका दूरगामी परिणाम बहुत हुआ। सन् 1946 का नौसेना विद्रोह इसका ज्वलन्त उदाहरण है। यह वही नौसेना विद्रोह था अर्चिता जिसके बाद से ही ब्रिटेन की चूले हिल गयी और ब्रितानी हूकूमत को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में और अधिक समय तक शासन नहीं किया जा सकता यह बात उन्हे समझ आ गयी कि : भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा अब उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।

मै जब भी मनन करती हूँ नेता जी द्वारा देश की आजादी के लिए किए गए त्याग, एवम समर्पण वाले पहलू पर तो मेरे सामने केवल एक ही तस्वीर बार बार घूँम जाती है अर्चिता यथा : नेता जी की आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहास में मुझे ऐसा कोई भी दूसरा दृष्टांत नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने एक साथ संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा होजिससे उस दौर की विश्व शक्तियाँ थर्रा गयी हो, ! 


टीश और दर्द तब बहुत होता है जब देखती हूँ वह भेद भाव जिसके अन्तर्गत आजादी से पूर्व और आजादी के बाद नेता जी के साथ इस देश ने एक समान ब्यवहार किया जिस प्रकार देश की स्वतन्त्रता से पूर्व विदेशी शासक नेताजी की दूरदर्शी सोच एवम आम जनता के पूर्ण सहयोग वाले उच्च सामर्थ्य से घबराते थे बिल्कुल उसी तरह तो स्वतन्त्रता के उपरान्त भारत के देशी सत्ताधीश चेहरे आम जनमानस पर सुभाष बाबू के व्यक्तित्व के अमिट प्रभाव से घबराते रहे। 


मेरे दिल मे सुभाष बाबू की इज्जत इस लिए भी बहुत है कि सुभाष बाबू इस दुनियाँ के प्रथम ऐसे कद्दावर व्यक्ति थे अर्चिता जिन्होने 40 के दूरूह दशक मे स्त्री समानता की नीव रखा और दुनियाँ के सामने यह उद्दाहरण प्रस्तुत किया की बिना स्त्री की सहायता, समानता, सहयोग और बराबरी,के इस विश्व का कोई भी राष्ट्र, कोई भी मुल्क कभी पूर्ण आजाद एवम उन्नत नही हो सकता ! आजादी के 70 साल बाद भी हम वह समानता इस देश मे स्त्री को न दे सके जो समानता 40 के दशक मे सुभाष बाबू ने महिला शक्ति को दिया था आजाद हिन्द फौज के भीतर “झाँसी की रानी रेजिमेंट” बनाकर ! हाँ मित्रो भारतीय राष्ट्रीय सेना की यह प्रथम महिला रेजिमेंट थी !


झाँसी की रानी रेजिमेंट आज़ाद हिन्द फ़ौज की वह महिला रेजिमेंट थी जो 1942 में सुभाष बाब के अथक प्रयास एवम भारतीय राष्ट्रवादियो के सहयोग द्वारा दक्षिण - पूर्व एशिया में जापानी सहायता से औपनिवेशिक भारत को ब्रिटिश राज से आज़ादी दिलवाने के उद्देश्य से बनायी गयी थी। 


डा०लक्ष्मी सहगल हम सबको सदैव याद रहेगी, यह डा० लक्ष्मी सहगल सुभाष बाबू की ही खोज थी ! नेता जी द्वारा एक महिला के नेतृत्व में इतनी बडी जिम्मेदारी का निर्वहन सौपना नमन करती हूँ नेता जी की उस आदर्श सोच को मै अर्चिता ! घोर आश्चर्य से भर जाती हूँ मै यह सोच कर की इस यूनिट का निर्माण जुलाई सन 1943 में नेता जी ने अपनी सूझ बूझ से किया था ! नेता जी के भीतर राष्ट्र के इतिहास के प्रति सम्मान इतना की 1857 के क्रान्ति की कुशल योद्धा रानी झाँसी के बलिदान को सार्थकता प्रदान करते हुए नेता जी ने महिला रेजिमेंट का नाम “झाँसी की रानी रेजिमेंट रखा था।

भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार

 

Share:


Related Articles


Leave a Comment