100 रुपए का नया नोट जेब तक पहुंचने में लगेगा टाइम, ये है वजह

नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद 2000 और 500 के नए नोट जारी किए गए थे। अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया जल्द ही सौ रुपए का नया नोट जारी करने जा रही है। RBI ने 100 रुपे के नोट की पहली तस्वीर जारी कर दी है। लेकिन नए नोट के लिहाज से देशभर के 2.4 लाख एटीएम को तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती है।  इस पर एक अनुमान के मुताबिक 100 करोड़ खर्च होंगे।

देश में एटीएम का परिचालन करने वाले संगठन सीएटीएमआई ने कहा कि, “100 रुपए के नए नोट से कई चुनौतियां सामने आएंगी। वो भी इसलिए क्योंकि अभी 200 रुपए के नए नोट के लिहाज से ही मशीनों को दुरुस्त करने का काम पूरा नहीं हुआ है और इस बीच 100 रुपए के नए नोट के लिए एटीएम को तैयार करना है।"

हितैची पेमेंट सर्विसेज के प्रबंध निदेशक लोनी एंटोनी ने कहा कि 100 रुपए के नए नोट के हिसाब से एटीएम मशीनों को अनुकूल बनाने में 12 महीने लगेंगे और इस पर 100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। गुरुवार को ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सौ रुपए के नए नोट की तस्वीर जारी की थी। नया 100 का नोट महात्मा गांधी सीरीज का होगा।

नोट की एक और खासियत इसमें छपने वाला स्मारक भी है। नोट के पिछले हिस्से में यूनेस्को की विश्वदाय सूची में शामिल गुजरात के पाटन स्थित रानी की बावड़ी नोट पर दिखाई देगी। आमतौर पर लोगों के बीच कम चर्चित इस ऐतिहासिक इमारत को यूनेस्को ने बावड़ियों की रानी की उपाधि दी है।

यह पहला नोट होगा, जिसमें तकनीक से लेकर सामग्री तक सब कुछ भारतीय है। इस नोट में लगने वाला कागज भारत में तैयार किया गया है। प्रिंटिंग में लगने वाली स्याही भारतीय है और सिक्योरिटी फीचर भी पूरी तरह भारत में ही तैयार किए गए हैं।

खास सिक्योरिटी फीचर से लैस होगा

नए नोट की सिक्योरिटी फीचर में सबसे प्रमुख गांधी जी की तस्वीर होगी। इस सिक्योरिटी फीचर को गुप्त रखा जाएगा, लेकिन यह नोट के रंग से कंट्रास्ट में होगा। नोट का रंग हल्का जामुनी होगा। आरबीआइ सूत्रों के अनुसार यही सबसे बड़ा सिक्योरिटी फीचर है। इसके अलावा करीब दो दर्जन सूक्ष्म सिक्योरिटी फीचर बढ़ाए गए हैं, जो पुराने नोट में नहीं है। 

छोटा होगा नए नोट का आकार

100 रुपए के नए नोट की एक गड्डी का वजन तकरीबन 83 ग्राम होगा। नोट की लंबाई और चौड़ाई में करीब 10 फीसद की कमी की गई है। इस नोट में गुजरात के पाटन जिले में स्थित रानी की बावड़ी की तस्वीर दिखेगी। भारत के इस एतिहासिक स्थल को यूनेस्को ने साल 2014 में विश्व विरासत की सूची में शामिल किया था। यूनेस्को ने इस बावड़ी को भारत में स्थित सभी बावड़ियों की रानी के खिताब से नवाजा है। वर्ष 2001 में इस बावड़ी से 11वीं और 12वीं शताब्दी में बनी दो मूर्तियां चोरी कर ली गईं थी।

बावड़ी का इतिहास

सोलंकी राजवंश की रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव प्रथम की याद में 1063 में इस बावड़ी को शुरू किया था। यह बावड़ी सरस्वती नदी के पानी में डूब गई थी। बाढ़ का पानी उतरने के बाद इस बावड़ी में सिल्ट जमा हो गया था। जिसे 1980 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने फिर से चालू किया। पुरातत्व विभाग की देखरेख में बावड़ी को पुराने स्वरूप में फिर से लाया गया।

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