मुंबई : पिछले सप्ताह वेदांता लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व की सब्सिडरी वेदांता कॉपर इंटरनेशनल ने सऊदी अरब गणराज्य के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत इसने कॉपर प्रोजेक्ट्स की स्थापना के लिए 2 बिलियन डॉलर के निवेश की योजनाएं बनाई हैं। इस परियोजना में 400,000 टन सालाना ग्रीनफील्ड कॉपर स्मेल्टर एवं रिफाइनरी तथा 300,000 टन सालाना कॉपर रॉड परियोजना शामिल हैं। वर्तमान में गणराज्य में कॉपर की मांग 365,000 टन प्रतिवर्ष है, जो मुख्य रूप से आयात द्वारा ही पूरी की जाती है। धातु की मांग बढ़ने के साथ, सऊदी अरब में वेदांता की कॉपर युनिट आयात को कम करने में योगदान देगी। कॉपर स्मेल्टर कच्चे कॉपर अयस्क को रिफाइन्ड धातु में बदलेगी, वहीं रिफाइनरी इसमें से अशुद्धियों को निकाल कर ओद्यौगिक उपयोग के लिए उच्च गुणवत्ता कॉपर का उत्पादन करेगी। कॉपर रॉड प्लांट रिफाइन्ड कॉपर को रॉड्स में बदलेगा, जिसका इस्तेमाल केबल्स एवं अन्य उत्पादों में किया जा सकता है।
सऊदी अरब का लाभ भारत के लिए नुकसान है। मध्य पूर्व में कॉपर संचालन स्थापित करने की घोषणा से पहले वेदांता तमिलनाडु के टुटिकोरिन में कॉपर प्लांट चलाती थी। अपनी चरम क्षमता पर, वेदांता का स्टरलाईट कॉपर प्लांट सालाना 400,000 टन कॉपर का उत्पादन करता था, जो भारत में कॉपर की 40 फीसदी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम था। कंपनी ने धातु की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए विस्तार की योजनाएं भी बनाई थीं। हालांकि स्टरलाईट कॉपर विवाद में आ गया और कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के चलते प्लांट को बंद करना पड़ा। इसका सीधा असर वेदांता की कमाई तथा 30,000 प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष नौकरियों पर पड़ा। प्लांट के बंद होने से मात्र एक वित्तीय वर्ष में भारत अगले निर्यातक के बजाए कॉपर का शुद्ध आयातक बन गया। वित्तीय वर्ष 18 में भारत का शुद्ध कॉपर निर्यात 180,000 टन था, वहीं कंपनी वित्तीय वर्ष 19 में 283,000 टन की शुद्ध आयातक बन गई। वित्तीय वर्ष 23 में सकल आयात 275,000 टन रहा और निर्यात कम होकर मात्र 61,000 टन पर पहुंच गया।
सऊदी अरब में प्रवेश के साथ वेदांता ने एक बार फिर से कॉपर पर बड़ा दांव लगाया है, क्योंकि इसके ढेरों उपयोगों के चलते इस धातु की मांग बढ़ने की उम्मीद है। इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर नवीकरणीय उर्जा तक, विद्युत संचरण से लेकर बुनियादी सुविधाओं तक, कॉपर का उपयोग वायरिंग, अप्लायन्सेज़, केबल्स और ईवी बैटरियों में किया जाता है। उदाहरण के लिए सोलर फार्म प्रति गीगावॉट क्षमता पर तकरीबन 2.4 टन कॉपर का इस्तेमाल करता है। वहीं ऑफशोर विंड फार्म को टरबाईन के लिए प्रति गीगावॉट पर 13.5 टन की आवश्यकता होती है। खनन से लेकर धातु तक, इस सदन ने ज़ाम्बिया में कोंकोला कॉपर माइन्स का नियन्त्रण भी हासिल कर लिया है। अपने बड़े भंडार के साथ उम्मीद है कि केसीएम वेदांता के सऊदी संचालन के लिए कॉपर कॉन्सन्ट्रेट के सतत आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरेगा।
वेदांता के साथ जुड़ने से सऊदी अरब को लाभ होगा क्योंकि इसने 2030 तक अपनी 50 फीसदी उर्जा नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने की योना बनाई है। देश में कॉपर की पर्याप्त उपलब्धता से सोलर फार्म, विंड टरबाईन, पावर लाईन के लिए मांग पूरी करने की मदद मिलेगी और गणराज्य की आयात पर निर्भरता कम होगा। सऊदी अरब अपनी स्थानीय मांग को पूरा करने के बाद ग्लोबर सप्लाई चेन में मुख्य प्लेयर के रूप में भी उभर सकता है।
जहां एक ओर भारत ने अपना पूर्णतया संचालन कॉपर स्मेल्टर खो दिया और शु़द्ध आयातक में बदल गया है, वहीं सऊदी अरब में कॉपर प्लांट के निर्माण से हमें रिफाइन्ड कॉपर का भरोसेमंद और स्थिर स्रोत मिल सकता है और चीन पर निर्भरता कम हो सकती है।