दिमाग से नहीं, दिल से कहानी सुनाएं : सुभाष घई

आईआईएमसी के सत्रारंभ समारोह का मंगलवार को दूसरा दिन*  

*नई दिल्ली, 24 नवंबर ।* 'सिनेमा हो या मीडिया, आप कहानी दिमाग से नहीं, दिल से सुनाएं। और जब आप दिल से कहानी सुनाएंगे, तभी आप एक अच्छे कम्युनिकेटर बन पाएंगे।' यह विचार प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं निर्देशक *श्री सुभाष घई* ने मंगलवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के सत्रारंभ समारोह के दूसरे दिन व्यक्त किये।

विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए श्री घई ने कहा कि लगभग 3500 साल पहले वेद, उपनिषद, रामायण और महाभारत लिखे गए। उस समय में बड़े बड़े कवि और लेखक भी हुए। उन्होंने अपने जीवन से जो सीखा, वो कविता, नाटक और मंत्रों के द्वारा लोगों तक पहुंचाया। उन्होंने भाषण नहीं लिखे, बल्कि लोगों को समझ में आने वाला कंटेट लिखा। नाटक के साथ संगीत आया और वहां से ड्रामा और साहित्य पैदा हुआ। जिसने पूरी दुनिया को एक नई दिशा दिखाई। और ये सब दिमाग से नहीं, बल्कि दिल से लिखा गया। 

श्री घई ने कहा कि मैं रोज सुबह जब उठता हूं, तो कुछ सीखने के लिए उठता हूं और आज भी मैं बच्चों से कुछ सीखने आया हूं। सीखने का ये जज्बा हर विद्यार्थी के अंदर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया सिर्फ अपने में व्यस्त है। अगर 'मास कम्युनिकेशन' के विद्यार्थी भी स्वयं में व्यस्त रहेंगे, तो वे 'मास' को कैसे समझ पाएंगे। सिनेमा भी मास मीडिया है, क्योंकि हम फिल्में अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए बनाते हैं। इसलिए हमारी नजर में समाज पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

निष्पक्ष पत्रकारिता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जैसे दुकानदार बनने के लिए ग्राहक को पहचानना पड़ता है, उसी तरह पत्रकार को भी खबर लिखने से पहले समाज को पहचानना चाहिये। दूसरों को पहचानने के लिए स्वयं को पहचानना बेहद आवश्यक है। और इसके लिए आपको खुद का शिक्षक बनना पड़ेगा। जब आप स्वयं के शिक्षक बनते हैं, तब आप अपने प्लस और माइनस पाइंट दोनों जानते हैं। श्री घई ने बताया कि अगर आपको सम्मान पाना है, तो दूसरों का सम्मान करना होगा। आपको अपने पेरेंट्स को एक दोस्त की तरह समझना होगा। इसलिए दूसरों का दिमाग नहीं, बल्कि दिल जीतना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

इससे पहले कार्यक्रम के प्रथम सत्र में *'भारतीय मीडिया में संपादकीय स्वतंत्रता'* विषय पर बोलते हुए हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक *श्री सुकुमार रंगनाथन* ने कहा कि हमें पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, तभी हम अच्छी पत्रकारिता कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अच्छी पत्रकारिता ढेर सारी मेहनत भी साथ लेकर आती है, इसलिए विद्यार्थियों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए।  

वरिष्ठ पत्रकार *श्री उमेश उपाध्याय* ने कहा कि भारत में संविधान के द्वारा जो स्वतंत्रता मीडिया को दी गई थी, वो आज भी मौजूद है। लेकिन आज ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि संपादकीय स्वतंत्रता कम हो गई है। उन्होंने कहा कि 'एडिटोरियल फ्रीडम' असल में 'मैन वर्सेज मशीन' का इश्यू है। आज मशीने ये तय कर रही हैं कि क्या और कैसे देखना है। इसलिए समाज को इस विषय पर संवेदनशील होना होगा। 

इस अवसर पर ऑर्गेनाइजर के संपादक *श्री प्रफुल्ल केतकर* ने कहा कि प्रत्येक मीडिया संस्थान की अपनी एक संपादकीय पॉलिसी होती है और उसी के हिसाब से संपादकीय स्वतंत्रता तय होती है। इसलिए ये दोष देना गलत है कि सरकार संपादकीय स्वतंत्रता में दखल दे रही है। 

कार्यक्रम के अंतिम सत्र में *'भारत में कृषि क्षेत्र की संभावनाएं और चुनौतियां'* विषय पर गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति *प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा* एवं सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज, चेन्नई के निदेशक *डॉ. जे.के. बजाज* ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया।

समारोह के तीसरे दिन बुधवार को हांगकांग बैपटिस्ट यूनिवर्सिटी की *प्रोफेसर दया थुस्सु*, अमेरिका की हार्टफर्ड यूनिसर्विटी के *प्रोफेसर संदीप मुप्पिदी*, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के एसोसिएट डीन *प्रो. सिद्धार्थ शेखर सिंह* एवं उद्यमी *आदित्य झा* विद्यार्थियों से रूबरू होंगे।

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