रायपुर। राष्ट्रीय किसान महासंघ के बैनर तले देशभर में आयोजित किसान आंदोलन का छत्तीसगढ़ में कोई खास असर नहीं हुआ। प्रदेश के एक दर्जन किसान संगठनों में से अधिकांश पहले दिन आंदोलन में शामिल नहीं हुए। राष्ट्रीय किसान महासंघ ने पिछले साल एक से 10 जून तक मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बड़ा आंदोलन किया था।
इस आंदोलन के दौरान ही 6 जून को मध्यप्रदेश के मंदसौर में छह किसान पुलिस की गोलीबारी में मारे गए थे। इस बार 6 जून को शहीद दिवस आयोजन किया गया है। छत्तीसगढ़ के किसान संगठन शहीद दिवस के दिन आंदोलन में शामिल होंगे।
इस बार राष्ट्रीय किसान महासंघ ने एक से दस जून तक देशव्यापी किसान आंदोलन का आह्वान किया है। छत्तीसगढ़ के किसान संगठनों में से सिर्फ तीन संगठनों छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन, किसान मजदूर संघर्ष समिति और अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा ने समर्थन दिया है।
प्रगतिशील किसान संगठन का दुर्ग संभाग में काफी प्रभाव है। किसान मजदूर संघ का सराईपाली और क्रांतिकारी किसान सभा का गरियाबंद इलाके में असर है। हालांकि पहले दिन सिर्फ दुर्ग संभाग में ही आंदोलन में किसानों की मामूली हिस्सेदारी दिखी।
छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष राजकुमार गुप्त ने बताया कि उनके संगठन ने इस आंदोलन को लेकर 16 से 31 मई तक जागरूकता पखवाड़ा का आयोजन किया था। किसानों से अपील की गई थी कि आंदोलन के दस दिनों के दौरान मंडी और शहर में अपने उत्पाद लेकर न आएं।
संगठन ने 10-10 किसानों का जत्था मंडियों में तैनात किया था। मंडी पहुंचने वाले किसानों को समझाया गया कि यहां माल न बेचें, अपने गांव जाएं, अगर कोई गांव आकर आपका माल खरीदे तो ही बेचें। इस अपील का छोटे किसानों पर असर हुआ जबकि बड़े किसान और दुग्ध उत्पादक इसमें शामिल नहीं हुए।
पहले दिन किसान आंदोलन का असर दुर्ग संभाग की कुछ मंडियों में मामूली रूप से पड़ा। प्रदेश के दूसरे शहरों में इसका कोई असर नहीं रहा। बस्तर, रायपुर, राजनांदगांव, मतरी, कांकेर, महासमुंद आदि जगहों पर किसानों के किसी भी प्रकार के प्रदर्शन नहीं किए जाने के कारण जनजीवन सामान्य रहा।
गौरतलब है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू कराने और किसानों की आमदनी बढ़ाने की मांग को लेकर राष्ट्रीय किसान महासंघ ने 160 संगठनों के साथ मिलकर 10 दिवसीय प्रदर्शन और हड़ताल का एलान किया है।