शास्त्रों में अमावस्या तिथि का बड़ा महत्व, तर्पण और दान से पितृ होते हैं तृप्त

धर्मशास्त्रों में प्रत्येक तिथि का विशेष महत्व है और हर तिथि देवताओं को समर्पित है। प्रत्येक मास को दो पक्षों में विभक्त किया गया है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। दोनों पक्ष मिलाकर 30 दिनों के होते हैं। शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या होती है। अमावस्या को मास का अंतिम दिवस माना जाता है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि पितृों को समर्पित मानी जाता है और इस दिन तर्पण, दान और पितृकर्म का विशेष महत्व माना जाता है।

साल में हर महीने एक अमावस्या आती है, लेकिन चैत्र मास में आने वाली अमावस्या का विशेष महत्व होता है।चैत्र मास के लगने के साथ ही शीत ऋतु की विदाई हो जाती है और गर्मी का आगमन होता है। गर्मी धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंचना शुरू होती है और वनस्पतियां भी इस दौरान फूल पत्तों से विहीन होती है। पानी की कमी भी महसूस होने लगती है। ऐसे समय में पशु-पक्षियों की सेवा से भी अनन्त गुना पुण्य मिलता है।

अमावस्या तिथि पितृों को समर्पित है इसलिए इस तिथि को पितृकर्म करने का प्रावधान है, लेकिन चैत्र मास की अमावस्या को पितृों के लिए किया गया तर्पण, श्राद्ध, दान, पुण्य अनन्त गुना फल प्रदान करता है। पितृ तृप्त होते हैं और वे अपने परिवारजनों को सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इहलोक के छोड़ने के बाद पितृ पितृलोक में विचरण करते रहते हैं और वो अपने सगे-संबंधियों से अपेक्षा करते हैं कि वह उनकी भूख और प्यास को पितृकर्म के जरिये शांत करेंगे।

शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यदि पितृ के देहलोकगमन की तिथि पर पितृकर्म न कर सकें या उनके निधन की तिथि का ज्ञान न हो तो अमावस्या को उनके निमित्त पितृकर्म किया जा सकता है। चैत्र मास की अमावस्या पितृकर्म को करने का या उनके निमित्त दान-धर्म करने का एक बेहतर अवसर होता है। सूर्य को अर्घ्य देकर पीपल को जल देने का भी इस दिन विशेष महत्व है। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु नदियों और पवित्र सरोवरों में स्नान कर भी पुण्य कमाते हैं।
 

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