झाबुआ /सुनील डाबी/ खबर डिजिटल/ जिले में मानवता को झकझोर देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। मेघनगर जनपद की ग्राम पंचायत चरेल में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आज भी बेहद कठिन और दर्दनाक बनी हुई है। गाँव के उप सरपंच की धर्मपत्नी की अंतिम यात्रा के दौरान जो दृश्य देखने को मिला, वह दिल को दहला देने वाला था—
कंधों पर शव, पैरों में पानी और सामने कच्चा-पथरीला रास्ता।
न रास्ता… न पुलिया… और मजबूरी में पानी के भीतर से शव यात्रा
गांव से श्मशान घाट तक जाने के लिए न तो कोई पक्का रास्ता है और न ही कोई पुलिया। ग्रामीणों को शव को लेकर गले तक पानी में उतरना पड़ता है। बारिश के दिनों में यह संकट और भी भयावह हो जाता है—तेज़ बहाव, फिसलन भरी मिट्टी, और कीचड़ से भरे रास्ते ग्रामीणों के लिए जानलेवा साबित होते हैं।
चरेल ग्राम पंचायत में शव यात्रा को इस तरह पानी में उतरकर पार कराना पड़ता है । ग्रामीणों के अनुसार, बरसों से वे इस समस्या को झेल रहे हैं, लेकिन कोई स्थायी समाधान आज तक लागू नहीं किया गया।
ग्रामीण बोले – क्या हमारे मृतकों को सम्मानजनक विदाई भी नसीब नहीं?
ग्रामीणों ने बताया कि हर बार यह समस्या सामने आती है। कई बार प्रशासन, जनपद और जिला अधिकारियों को आवेदन दिए गए, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
लोगों के मन में यह पीड़ा लगातार बढ़ रही है कि “जीवन भर संघर्ष किया, और अंतिम सफर में भी चैन नहीं… क्या हमारे मृतकों की अंतिम विदाई का सम्मान भी कोई मायने नहीं रखता?”
*प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी उजागर*
गांव में वर्षों से पुलिया और रास्ते की मांग की जा रही है, परंतु स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधि दोनों ही इस समस्या पर गंभीर नहीं दिखते।
कागज़ों में योजनाएँ बनती हैं, लेकिन ज़मीन पर काम शुरू ही नहीं होता। बारिश का मौसम आते ही ग्रामीणों को इस दुरूह स्थिति से गुजरना पड़ता है, जबकि जिम्मेदार अधिकारियों के लिए यह मुद्दा प्राथमिकता में कहीं नजर ही नहीं आता।
ग्रामीणों का कहना है कि जनपद के जिम्मेदार अधिकारियों ने कभी भी इस ओर ध्यान नही दिया वह तो ऑफिसों की कुर्सियां तोड़ने में व्यस्त है इस ओर ध्यान देने वाला कोई नही है हर बार इस तरह की परीक्षा से होकर हमे गुजरना पड़ता है जब जाकर हम अंतिम संस्कार स्थल तक पहुँच पाते है पूर्व में भी इस मामले को मीडिया ने जमकर उठाया था मगर न कलेक्टर ने मामले को सज्ञान में लिया और नही जनपद सीइओ ने ओर नही आज तक कोई अधिकारी मोके पर पहुँचा आखिर यह कैसी तानाशाही विकास के नाम पर योजनाए बनती है तो आखिर हमारी परेशानी की कोई सुध क्यो नही ले रहा
कब जागेगा प्रशासन?
यह सवाल अब हर ग्रामीण के मन में है।
क्या किसी बड़े हादसे का इंतज़ार है?
क्या शव यात्रा के दौरान होने वाली असुविधा प्रशासन की आँखें खोलने के लिए पर्याप्त नहीं?
स्थानीय लोगों की यह मांग है कि—जल्द से जल्द पक्का मार्ग बनाया जाए,पुलिया का निर्माण हो, श्मशान घाट तक पहुँचने के लिए वैकल्पिक सुरक्षित मार्ग उपलब्ध कराया जाए
ग्रामीणों की पीड़ा को समझकर तत्काल समाधान की आवश्यकता
चरेल जैसे गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। अंतिम संस्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी प्रशासन की चुप्पी चिंता पैदा करती है।
अब समय आ गया है कि अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को नींद से जगना होगा और इस गंभीर समस्या का तुरन्त समाधान करना होगा


