Tuesday, December 3, 2024
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Homeमध्यप्रदेशMP Tribal Pride Day : जनजातियों के हक में PESA Act लागू

MP Tribal Pride Day : जनजातियों के हक में PESA Act लागू

MP Tribal Pride Day : जनजातीय समाज  tribal society  के नायक बिरसा मुंडा Birsa Munda के राष्ट्र निर्माण में अविस्मरणीय योगदान को चिरस्थायी बनाने के लिए उनके Birsa Munda birth anniversary  जन्म दिवस पर जनजातीय गौरव दिवस tribal pride day  मनाने का निर्णय लिया गया। इस फैसले से समाज को जनजातीय समाज के नायकों को जानने और समझने का अवसर मिला। मध्यप्रदेश जनजातीय MadhyaPradesh Tribal  बहुल समाज है और इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए भरसक प्रयास किये जाते रहे हैं लेकिन उनके जीवनस्तर में वैसा सुधार देखने को नहीं मिला, जितनी कोशिशें की गई। वर्तमान मध्यप्रदेश सरकार ने केन्द्र द्वारा वर्ष 1996 में पारित पेसा एक्ट लागू करने जा रही है ताकि जनजातीय समाज को बराबरी का अधिकार मिल सके और उनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आये। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पेसा एक्ट लागू करने के लिए 15 नवम्बर का दिन चुना है क्योंकि इस दिन बिरसा मुंडा की जयंती मनायी जाती है और इस दिन को गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।


मध्यप्रदेश में लागू होने जा रहे पेसा एक्ट क्या है और जनजातीय समाज को इससे क्या लाभ होगा, उनके अधिकारो में कैसे वृद्धि होगी, यह जानना जरूरी है। का पूरा नाम ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक है। भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर यह सहमति बनी कि अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक केंद्रीय कानून बनाना ठीक रहेगा, जिसके दायरे में राज्य विधानमंडल अपने-अपने कानून बना सके। इसके मूल उद्देश्यों में केंद्रीय कानून में जनजातियों की स्वायत्तता के बिंदु स्पष्ट कर दिये जाएं जिनका उल्लंघन करने की शक्ति राज्यों के पास न हो, जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना, पारंपरिक परिपाटियों की सुसंगता में उपयुक्त प्रशासनिक ढाँचा विकसित करना एवं ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना भी है।


पेसा अधिनियम PESA Act  में जनजातीय समाजों की ग्राम सभाओं को अत्यधिक ताकत दी गई है। संविधान के भाग 9 के पंचायतों से जुड़े प्रावधानों को ज़रूरी संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने का लक्ष्य है। गरीबी उन्मूलन और अन्य कार्यक्रमों के लिये लाभार्थियों को चिन्हित करने तथा चयन के लिये भी ग्राम सभा ही उत्तरदायी होगी। संविधान के भाग 9 के अंतर्गत जिन समुदायों के संबंध में आरक्षण के प्रावधान हैं उन्हें अनुसूचित क्षेत्रों में प्रत्येक पंचायत में उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा। साथ ही यह शर्त भी है कि अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण कुल स्थानों के 50त्न से कम नहीं होगा तथा पंचायतों के सभी स्तरों पर अध्यक्षों के पद अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित रहेंगे। मध्यवर्ती तथा जिला स्तर की पंचायतों में राज्य सरकार उन अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों को भी मनोनीत कर सकेगी जिनका उन पंचायतों में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, किंतु ऐसे मनोनीत प्रतिनिधियों की संख्या चुने जाने वाले कुल प्रतिनिधियों की संख्या के 10त्न से अधिक नहीं होनी चाहिये। राज्य विधानमंडल प्रयास करेंगे कि अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तर पर पंचायतों के लिये वैसा ही प्रशासनिक ढाँचा बनाया जाए जैसा कि संविधान की छठी अनुसूची में वर्णित जनजातीय क्षेत्रों पर लागू होता है। राज्य विधान के अंतर्गत ऐसी व्यवस्था होगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उच्च स्तर की पंचायतें निचले स्तर की किसी पंचायत या ग्राम सभा के अधिकारों का हनन अथवा उपयोग न करे। अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत से संबंधित किसी कानून का कोई प्रावधान यदि इस अधिनियम के संगति में है तो वह राष्ट्रपति द्वारा इस अधिनियम की स्वीकृति प्राप्त होने की तिथि के एक वर्ष की समाप्ति के बाद लागू होने से रह जाएगा।

उल्लेखनीय है कि Indian tribal freedom fighter बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के ऐसे नायक रहे, जिनको जनजातीय लोग आज भी गर्व से याद करते हैं. आदिवासियों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने तब के ब्रिटिश शासन से भी लोहा लिया था. उनके योगदान के चलते ही उनकी तस्वीर भारतीय संसद के संग्रहालय में लगी हुई है. ये सम्मान जनजातीय समुदाय में केवल बिरसा मुंडा को ही अब तक मिल सका है. बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड के खूंटी जि़ले में हुआ था.  बिरसा बचपन में अपनी मौसी के साथ उनके गांव चले गए थे जहां ईसाई धर्म के एक प्रचारक से उनका संपर्क हुआ. वह अपने प्रवचनों में मुंडाओं की पुरानी व्यवस्था की आलोचना करते थे. ये बात उन्हें अखर गई. यही वजह थी कि मिशनरी स्कूल में पढऩे के बाद भी वे अपने आदिवासी तौर तरीकों की ओर लौट आए.  लेकिन इन सबके बीच के उनके जीवन में एक अहम मोड़ आया जब 1894 में आदिवासियों की ज़मीन और वन संबंधी अधिकारों की मांग को लेकर वे सरदार आंदोलन में शामिल हुए. तब उन्हें महसूस हुआ कि ना तो आदिवासी और ना ही ईसाई धर्म, इस आंदोलन को तरजीह दे रहे हैं. इसके बाद उन्होंने एक अलग धार्मिक पद्धति की व्याख्या की, जिसे मानने वालों को आज बिरसाइत कहा जाता है. आमतौर पर धारणा है कि जनजातीय समाज में नशा किया जाता है, वह बिरसा मुंडा द्वारा स्थापित बिसाइत समाज को समझने के बाद यह धारणा ध्वस्त हो जाती है क्योंकि बिसाइत समाज किसी भी प्रकार के नशे की अनुमति नहीं है। बीड़ी और तम्बाकू का सेवन पर भी पाबंदी है। इन बंदिशों के कारण ही बिरसा मुंडा को भगवान संबोधित किया गया।

लेखक – वरिष्ठ पत्रकार, मनोज कुमार

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