पहले अपने गिरेबान में झांकना सीख लीजिए : अतुल मलिकराम

आजकल की शादियाँ रीति-रिवाजों पर नहीं, बल्कि दिखावे पर आधारित होती हैं। अच्छे से अच्छा खाना, साज-सज्जा, मेहमानों के लिए बेहतर से बेहतर सुख-सुविधाएं, ठहरने की उत्तम व्यवस्था, अच्छे-से अच्छा स्वागत-सत्कार आदि, ये ऐसे बिंदु हैं, जिन पर जितनी बात की जाए, कम ही होगी। लेकिन, लोगों की दूसरों पर ऊंगली उठाने की आदत, मेरी समझ के बाहर है। चंद दिनों पहले देश के एक बड़े घराने यानि अंबानी परिवार के बेटे अनंत अंबानी की शादी का आयोजन हुआ। सोशल मीडिया उठा लो या प्रिंट मीडिया, टेलीविज़न पर देख लो या फिर आम आदमी के समूह में खड़े हो जाओ, हर जगह इस शादी और इसमें हुए खर्चों को गंभीर मुद्दा बनाकर रखा हुआ है लोगों ने। 

लोगों को यह बात फूटी आंख नहीं सुहा रही है कि शादी में 5000 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। अब लोगों को गरीबी रेखा और देश में बढ़ते भूखमरी इंडेक्स की चिंता सताने लगी है। स्वस्थ्य और शिक्षा का निरंतर महंगा होना भी खटकने लगा है। गैस-पेट्रोल की महंगाई का रोना भी अब रोने लगे लोग। मोबाइल फोन के रिचार्ज महंगे हो रहे हैं, यह भी लोगों को दिख रहा है। इस महंगाई का शादी से क्या लेना-देना? और तो और लोग यह भी कह रहे हैं कि शादी का खर्चा निकालने के लिए अंबानी जी  ने रिचार्ज महंगा कर दिया। तो आप क्या यह चाहते हैं कि व्यक्ति इतनी महंगी शादी न करके आपके लिए महंगाई कम करने का काम करे? यानी वह अपना पैसा, आपकी सुख-सुविधाओं के लिए लगा दे। आप कर सकेंगे क्या ऐसा कुछ, यदि आप इतने सक्षम होंगे तो?

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