krishna kant shukla hindi Article on tribal – स्वतंत्र भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। जिसे रहनुमाई तंत्र ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ नाम दिया है। यह महोत्सव अपने आपमें विशेष है, क्योंकि इस महोत्सव के साथ ही पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हर घर तिरंगा अभियान में शरीक हो रहा है। वैसे देखा जाए तो स्वतंत्रता दिवस आजादी के असंख्य रण बांकुरों को याद करने का दिन है। ये आजादी हमें देश के लिए जीना और जरूरत पड़ने पर देश के लिए लड़ते-लड़ते बलिदान हो जाना सिखाती है। आजादी के वीर सपूत चंद्र शेखर, आजाद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव न जाने कितने वीरों ने देश की रक्षा के लिए स्वयं को न्यौछावर कर दिया। इस लड़ाई में अनेक लोग शहीद हो गए, जिनमें कुछ को याद किया जाता है और कुछ ऐसे महानायक हैं जो जंगलों में रहकर देश के भीतर और देश की सीमाओं पर लड़ाई लड़ी, कभी हार नहीं मानी। आज उनके यशगान करने का दिन है। जिन्होंने भारत की आजादी के लिए जाति, धर्म, पंथ नहीं देखा।
भारत का बच्चा-बच्चा अंग्रेजों के दमनकारी नीतियों से छुटकारा पाने के लिए, हर किसी के दिल में देश को आजाद कराने और ब्रिटिश साम्राज्य को बाहर खदेड़ने की चाहत थी। सब एकजुट हुए और एक साथ चलकर देश को आजाद कराया, तब आज हम 75वां आजादी का उत्सव मना रहे हैं। इस आजादी में मध्यप्रदेश के खाज्या नायक, भीमा नायक, शंकर शाह, रघुनाथ शाह जैसे अनेक आदिवासी क्रांतिकारी भी शामिल रहे। जिन्होंने जंगल में रहकर भी अंग्रेजों के विरूद्ध जंग छेड़ कर अंग्रेजी हुकूमत को नाको चने चबाने पर मजबूर किया। 1857 की क्रांति का आदिवासी योद्धा भीमा नायक जिन्हे निमाड़ का रॉबिनहुड कहा जाता है। भीमा नायक ऐसे आदिवासी योद्धा थे, जो आजादी की जंग में अकेले ही अंग्रेजी शासन को हिला दिया था। यहां तक कि अंग्रेज शासक, भीमा नायक के नाम से कांपते थे। उन्होंने आदिवासियों को एकजुट किया। धीरे धीरे आदिवासी समाज के कई योद्धा मिलकर गुमनामी में भी देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई।
हम स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा को भी नहीं भुला सकते। जिन्होंने वन बकायों को रद्द करने की मांग को लेकर 1895 में अंग्रेजो के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया। आदिवासी से आदिवासी समुदाय के भगवान बिरसा मुंडा कहलाने लगे। भगवान बिरसा मुंडा ने महारानी विक्टोरिया के शासन के अंत होने का उद्घोष किया। राजस्व वसूल करने वाले को लगान नहीं चुकाने का निर्देश दिया, क्योंकि उनकी जमीन अब मुक्त हो चुकी थी। भगवान बिरसा मुंडा की लोकप्रियता को देख ब्रिटिश सरकार भी भयभीत थी। ऐसे कई महानायकों ने समय समय पर इस धरती पर जन्म लिया। उन्होंने बिना किसी की परवाह करते हुए, आजादी के बाद भी देश की आंतरिक कमजोरी को दूर करने के लिए आवाज उठाते रहें। अब देश को आजादी से ज्यादा भारत की मजबूती पर ध्यान देने की जरूरत है। हमारे पास युवा शक्ति है। इन्हें सही दिशा में जाने के लिए प्रेरित करना है। फिर से अपनी माटी, जल, जंगल और प्रकृति में रहकर इसे मजबूती देना है। देश को आंतरिक मजबूती से ही हम बाहरी चुनौती का सामना कर सकेंगे। इसके लिए आत्मनिर्भरता ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।
समय के साथ परिस्थिति बदली है, खुद को भी अब बदलने का समय आ गया है। हमें उस दौर को भी याद करना चाहिए जब 1965 की लड़ाई के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने लाल बहादुर शास्त्री जी को धमकी दी थी कि अगर पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको गेहूँ भेजना बंद कर देंगे। शास्त्री जी की एक आवाज पर लाखों भारतीयों ने एक वक़्त का खाना छोड़ दिया था। ताकि हम कम संसाधन में मजबूती के साथ खड़े रह सकें। आज देश को आत्मनिर्भरता से मजबूत और सशक्त बनाया जा सकता है। अगर देश का हर नागरिक ऐसा करने में सफल हुआ तो निश्चित ही आने वाली चुनौती से हम नहीं डिगेंगे। जब भारत आजादी का 100वां साल का जश्न मनाया रहा होगा। तब हम विकसित देशों में शामिल रहेंगे। लेकिन आज की चुनौती को ध्यान नहीं दिया तो देश की क्या स्थिति होगी? इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आजादी के 75वें वर्षगांठ पर हमें आगे की रणनीति पर विचार करना होगा। क्योंकि अब लड़ाई अंग्रेजों के खिलाफ नहीं, अब लड़ाई धर्म, जाति, महंगाई, बेरोजगारी, जनसंख्या नियंत्रण और पर्यावरण जैसे मसलों पर होगी। आज हर धर्म का अपना अलग झंडा है, हम एक तिरंगे के नीचे रहकर आने वाली चुनौती से लड़ पाएंगे। हमारी अखंडता हमारी पहचान है, इसे तोड़ने के लिए आज कई साजिशें हो रही है। हम जितने टुकड़ों में बटेंगे, देश उतना ही कमजोर होता जाएगा। दमनकारी नीति उतनी ही आसानी से हमें तोड़ सकेगी। हमें एकता में शक्ति और एक राष्ट्र एक संकल्प एक तिरंगे के साथ आगे बढ़ना है। एक दूसरे का साथ देना है। देश और तिरंगे के प्रति यही सच्चा बलिदान होगा। जय हिंद, जय भारत!
लेखक
कृष्ण कान्त शुक्ल
स्वतंत्र पत्रकार