दलाईलामा संस्था का बने रहना लोगों की इच्छा पर निर्भर है। इस बारे न सिर्फ तिब्बतियों बल्कि हिमालयी क्षेत्र में हिमाचल और मंगोलिया के लोगों से भी चर्चा करनी चाहिए, जो इस संस्था से जुड़े हुए हैं। यह बात तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाईलामा ने शनिवार को हिमाचल के कांगड़ा में एक मल्टीमीडिया कंपनी के कार्यक्रम में कही। बकौल दलाईलामा, ‘मैं आज मर जाऊं तो कई लोग दलाईलामा संस्था को बरकरार रखना चाहेंगे, लेकिन 20 से 30 साल बाद मुमकिन है कि उनका नजरिया बदल जाए।’ कहा कि पांचवें दलाई लामा के समय से यह संस्था अस्थायी और धार्मिक रूप से कायम है।
कहा कि पिछले कुछ समय से उन्होंने खुद को राजनीतिक मामलों से अलग कर रखा है और ऐसे मामले अब निर्वासित सरकार देखती है। ऐसे में दलाईलामा संस्था विशुद्ध रूप से धार्मिक है। बुद्ध ही नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म के कई गुरुओं ने हमें ज्ञान सौंपा है और वह ही वास्तव में हमारे शिक्षक हैं।
भारत ने दुनिया को बीते 3000 साल में धार्मिक सहनशीलता सिखाई है और यह साबित किया है कि विविधता के बावजूद सभी धमोर् में समानता की भावना संभव है। तिब्बती संस्कृति ने हजारों साल की आर्य सभ्यता से अंदरूनी शांति की प्राप्ति के बारे में बहुत कुछ सीखा है। भारत परंपरागत और ऐतिहासिक रूप से गुरु है और हम उसके चेले हैं। आज की सदी में शांति व सौहार्द इंसान की सबसे बड़ी मांग है। मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह भौतिक साधनों की प्राप्ति की तरह उन्मुख है। यह नैतिक मूल्य नहीं सिखा रही है। दलाईलामा ने कहा कि हमें ऐसे अलग शिक्षण संस्थानों की जरूरत है जो हमारे अंदरूनी गुणों को मजबूत करें।