गौरव उपाध्याय : “सुबह की छाँव देखकर निराश होने वालों घर के कुछ हिस्सों में धूप सिर्फ़ दोपहर में आती है”। गौरव उपाध्याय की ये पंक्तियाँ उम्मीद और धैर्य के साथ जीवन को नए नज़रिए से जीने का रास्ता दिखाती हैं। बिहार के छोटे से शहर मोतिहारी से शुरू हुआ सफ़र, कई देशों और कई अनुभवों से गुज़रा है । पन्द्रह साल के कोरपोरेट कैरीयर के बाद आज पिछले दस सालों से सिंगापुर में रहने के बावजूद, गौरव जी ने हिंदी लेखन और हिंदी संवादों के ज़रिए युवाओं और हर उम्र के लोगों को जीने का नया रास्ता दिखाने की ज़िद ठानी है।
सोशल मीडिया में “मन की आवाज़” से प्रचलित, गौरव जी की पहली किताब “ मोस्ट वांटेड ज़िंदगी” को जहाँ लोगों ने एक ताजी हवा के झोंके के तरह स्वीकार किया, वहीं पेंग्विन स्वदेश से छपी उनकी नई किताब “ ज़िंदगी अनलिमिटेड” हज़ारों लोगों का मार्गदर्शन कर रही है। सेल्फ़ हेल्प श्रेणी में हिंदी में मूलतः लिखी पुस्तकें सीमित रहीं हैं और ज़िंदगी अनलिमिटेड ने इस सीमित मौहौल में एक नई दिशा प्रदान की है।
इस पुस्तक का ध्येय है आपको अपने दायरों को समझने में मदद करना और फिर उन दायरों को तोड़ने की पहल करना। पुस्तक के अनुसार हम में से हर किसी के पास अपना जीवन अगले स्तर तक जीने का सामर्थ्य है और हम सबको जीना चाहिए।
लेखक के शब्दों में–“यह किताब, एक व्यावहारिक प्रयास है – असीमित ज़िंदगी जीने की ओर-अदृश्य दीवारों को तोड़ने की ओर । अक़्सर या तो लोग बिलकुल ही आध्यात्मिक मार्ग अपनाने का सुझाव दे रहे हैं , या फिर बिलकुल ही व्याहारिक सुझाव । मेरे हिसाब से एक बीच का रास्ता है – जो संतुलन की तरफ़ जाता है । आप अमीर भी हो सकते हैं और आध्यात्मिक भी । आप अंग्रेज़ी भी बोल सकते हैं और ज़मीन से जुड़े भी हो सकते हैं । आप तय करेंगे कि आपके लिए जीवन के मायने क्या है, जीवन की सीमाएँ क्या हैं। “
इस किताब को आप तीन हिस्सों में बँटा हुआ पाएँगे, जिनके ज़रिए आप उन कहानियों से परिचित होंगे जो असीमित ज़िंदगी की संभावना से आपको मिलवाएँगीं, कुछ अभ्यास सीखेंगे जो आपको हर रोज़ दायरों को तोड़कर जीना सीखाएँगे और आपको एक रूपरेखा मिलेगी अपनी असीमित ज़िंदगी की एक नई स्क्रिप्ट लिखने के लिए। पूरी किताब में आप असीमितता के कॉन्सेप्ट दो तरीक़ों से देखेंगे – एक वो चीजों जो आप स्वयं में बदल सकते हैं, स्वयं से कर सकते हैं और दूसरी वो चीजें जिनके लिए आप अपनी प्रतिक्रियाओं में बदलाव कर सकते हैं।
गौरव उपाध्याय कुछ आवश्यक पहलुओं के ज़रिए दायरों को तोड़ने का रास्ता दिखाते हैं। ये पहलू हैं – आपकी सोच, पीड़ा और हीलिंग , परिस्थितियाँ और समय। आम जीवन से उठाए गए कथानक, आम लोगों से की गई बातों से उदाहरण, गद्य के साथ कविताओं का मिश्रण और गौरव जी की सरल भाषा इस पुस्तक को वाक़ई में ख़ास बनती है । किताब से ही एक अंश कि – “कहते हैं मनुष्य जो खाता हैं , वहीं बन जाता है लेकिन उससे पहले मनुष्य यह सोचता है कि उसे क्या खाना है और कितना खाना है । आप अपनी आबो हवा चुनिए जिसमें आपकी सोच और आप खिलेंगे , आगे बढ़ेंगे । अपनी सोच को अपनाने बिना और समझाए बिना जीना ऐसे हैं जैसे सूखे पत्ते की तरह आँधियों में उड़ते रहना , कभी इस घाट कभी उस घाट । आप तय करेंगे कि आपको किस घाट उतरना है , अगर आपकी सोच आपके साथ हैं ,आप अपनी सोच के साथ हैं एक ख़ूबसूरत रिश्ते में।