मोदी और नेहरू की बराबरी पर बहस क्यों?

लेखक - मनोज कुमार/ इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु से की जा  रही है. कहा जा रहा है कि तीन बार उन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और अब नरेन्द्र मोदी तीन बार चुनाव जीतकर उनकी बराबरी पर आ गए हैं. और इसके साथ ही मोदी समर्थकों और उनके विरोधियों के बीच शब्द संघर्ष शुरू हो गया है. मोदी विरोधी लगातार इस बात को गलत साबित करने पर जुटे हुए हैं कि मोदी नेहरू के बराबर चुनाव जीते नहीं है वहीं मोदी समर्थक इस बात को लेकर खड़े हैं कि तीन दफा लोकसभा चुनाव जीत कर मोदी नेहरू की बराबरी कर चुके हैं. जिन बातों को लेकर मोदी पर तंज कसा जा रहा है या उनके समर्थक उनका कद बड़ा करने में उतारू हैं, ये दोनों पक्षों को इस बात का पता ही नहीं है कि तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी ने ऐसा कोई दावा किया है कि वे नेहरू के बराबरी पर आ खड़े हुए हैं.
 
दरअसल मोदी अनेक बार नेहरू की नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर उनका विरोध करते दिखे हैं और उनके समर्थकों ने उनका कद बढ़ाने के फेर में मोदी को नेहरू के बराबर खड़ाकर एक नए विरोध को जन्म दिया है. हां, यदि मोदी कहीं इस विषय में अपना बयान देते तो जरूर इस बात की चर्चा हो सकती है लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं है. एक तरफ मोदी समर्थक हवा में लाठी भांज रहे हैं तो मोदी विरोधी भी लगातार सक्रिय होकर मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है. बार-बार नेहरू ने कब कब और कितने चुनाव जीते, इसको लेकर आंकड़े जारी कर रहे हैं लेकिन इसका कोई सरोकार दिखता नहीं है. हालांकि मोदी समर्थकों के अति उत्साह के फेर में मोदी की लोकप्रियता को घात पहुंचता है, जिसका ध्यान समर्थकों को रखा जाना चाहिए.

पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने समय के लोकप्रिय नायक थे तो वर्तमान समय में यही ख्याति मोदी के खाते में है. दोनों नायकों की कार्यशैली, समय की आवश्यकता और बदलती हुई परिस्थितियों से जूझने की असीम शक्ति उन्हें नायक के रूप में भारतीय समाज में स्थापित करती है. इस बात को झुठला पाना गलत है कि नरेन्द्र मोदी लोकप्रिय नहीं हैं या पंडित नेहरू असामयिक हो गए हैं. मोदी विरोधियों को इस बात की तसल्ली है कि 2024 के चुनाव में भाजपा की सीटों में गिरावट आयी है। लोकसभा चुनाव में सीटों की कमी को लोग मोदी के लिए चुनौती मान रहे हैं लेकिन इसके उलट सच को देखें तो मोदी इस समय में जनता की नब्ज को जानते हैं और वे अपनी लोकप्रियता कैसे कायम रख सकते हैं, इसके बारे में भी संजीदा है. 

मेलोनी के साथ सेल्फी मोदी नहीं भी लेते तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इस सेल्फी की दुनिया भर में चर्चा हो जाने से मोदी की पीआर गुण अलग से दिखता है. मोदी अपनी इमेज बिल्डिंग स्वयं करते हैं और इसके लिए उन्हें किसी पीआर एजेंसी की जरूरत नहीं होती है. पीआर एजेंसी की अपनी सीमा और समझ होती है लेकिन आम आदमी को समझना मोदी जैसे नेताओं के वश में है. चुनाव के दरम्यान वे जहां भी गए, उनके होकर रह गए. अपनी बात कहना और लोगों से समर्थन मांगने की उनकी अपनी शैली है और आम आदमी उनकी इसी शैली पर फिदा है. चुनाव में जीत-हार और सीटों में कम-ज्यादा होना कोई ऐसी हैरतअंगेज घटना नहीं है जो मोदी की नींद उड़ा दे. मोदी सर्वप्रिय हैं और उन्हें बने रहना आता है. 

बीते दो कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक छवि बनायी है. देश के भीतर महिलाओं को लेकर उनकी चिंता जग-जाहिर है. अनेक योजनाएं महिलाओं के हक में बनायी गई. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अनेक योजनाओं को जब जमीन पर उतारा जाता है तो परिणाम सौ फीसदी नहीं होते हैं. यहां परिणाम से ज्यादा जरूरी होता है कि नीयत का. अगर आप जनता की कल्याण की दृष्टि से नीयत से कार्य करते हैं तो सफलता दूर नहीं होती है. मोदी ने यही कमाल किया है. गरीबों को उनका अपना छत देने का केवल सपना नहीं दिखाया बल्कि उन्हें पक्का घर मुहय्या कराया है. यही नहीं, मिलीभगत से अपात्र लोगों ने जब योजना का लाभ लिया तो उन्हें दंड सहित सबकुछ लौटाना पड़ा है. किसानों और आदिवासियों के हक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजनाएं जमीन पर दिख रही है. 

आखिर में वही, मोदी ने कभी, कहीं नहीं कहा कि वे तीसरी बार चुनाव जीत कर पंडित नेहरू के बराबरी कर ली है. समर्थकों का अतिउत्साह और विरोधियों की चाल से मोदी की छवि को डेंट करने की कोशिश हो रही है लेकिन मोदी है तो ऐसा मुमकिन नहीं है. (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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