ठीक पाँच वर्ष पहले शिक्षा मंत्रालय ने वर्तमान एजुकेशनल सिस्टम में सुधार के उद्देश्य से एक साहसिक कदम उठाया था, जिसके तहत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के लिए बोर्ड परीक्षाओं पर अंकुश लगाने का फैसला लिया गया था। परिणामस्वरूप, पुराने मार्किंग सिस्टम की जगह नया ग्रेडिंग सिस्टम लागू कर दिया गया। इस नए सिस्टम के अनुसार, 8वीं कक्षा तक के छात्रों को अनुत्तीर्ण करने या उन्हें किसी भी कारण से रोक कर रखने की स्पष्ट मनाही है, साथ ही 10वीं और 12वीं कक्षाओं के लिए बोर्ड परीक्षा यथावत रखी गई है।
ग्रेडिंग सिस्टम की शुरूआत करने का उद्देश्य सिर्फ परीक्षा के अंकों पर ध्यान देने तक ही सीमित नहीं था, इसका दृष्टिकोण पार्टिसिपेशन, क्रिएटिविटी और समग्र विकास जैसे कारकों सहित छात्र की परफॉर्मेंस का समग्र और व्यापक मूल्यांकन करना भी था। लेकिन, कहीं न कहीं प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के मूल्यांकन और प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति, छात्र के सीखने की क्षमता और विकास पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नकारात्मक परिणाम डालने का काम कर रही है।
वर्तमान एजुकेशन सिस्टम के तहत, ऐसी स्थिति बन पड़ी है कि अधिकांश छात्र अपने भीतर स्किल्स डेवलप करने की कला भूल बैठे हैं। और तो और, जो पहले बच्चों में अव्वल आने की ललक हुआ करती थी, वह भी वे खो बैठे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि वे पढ़ाई नहीं भी करेंगे, तो उत्तीर्ण तो हो ही जाएँगे। फिर कम प्रयासों के साथ ही वे 10वीं कक्षा तक पहुँच जाते हैं। इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना पैर पसार कर बैठ जाती है। जब वे हायर सेकंडरी और एसएससी जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होते हैं, तो वे अक्सर खुद को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हुए पाते हैं और शुरुआती तौर पर ही उनकी शिक्षा की गाड़ी के पहिए लड़खड़ाने लगे हैं।