शिवराज का ही चलेगा राज, मुद्दों को भुनाने में विफल रहा विपक्ष - अतुल मलिकराम

- एमपी चुनाव 2023 में मतदाताओं के प्रमुख मुद्दे क्या रहे हैं? किस आधार पर मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया है?

उत्तर: मतदाता लाचार रहा, जिसके पास बीजेपी और कांग्रेस के आधार पर मतदान करने के अलावा और कोई मुद्दा ही नहीं था. चूँकि न ही 18 सालों की खामियों को कांग्रेस अच्छे से जनता को समझा पाई और न ही बीजेपी इन सालों के अपने कामों को जनता तक 100 फीसदी पहुंचा पाई. कह सकते हैं कि चुनाव तय समय पर होते थे इसलिए हो गए, मतदाता के पास ऐसा कोई मुद्दा नहीं था जिसके आधार पर वह पोलिंग बूथ पहुंचे.

- आपके अनुसार एमपी चुनाव 2023 में बीजेपी-कांग्रेस की ताकत और कमजोरियां क्या रही हैं?

उत्तर: बीजेपी की कमजोरी का जिक्र करें तो बीजेपी के अंदर एंटी इंकम्बेंसी वाली बात जो प्रमुख रूप से, खुद उनके ही लोगों से सामने आ रही थी, जो चीख चीख के कह रही थी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नहीं होंगे, उसे उनकी सबसे बड़ी कमजोरी के रूप में देखा जा सकता है. बाकि मुद्दे आये और गए जैसे थे जिन्हे कमजोरी के रूप में नहीं आँका जा सकता. कांग्रेस की कमजोरी सत्तापक्ष को जमीनी स्तर पर पूरी ताकत से न घेर पाना रहा. इसके अलावा खुद में मंत्रमुग्ध कांग्रेसी नेताओं को भी एक कमजोरी के रूप में देखा जा सकता है. जहाँ तक दोनों ही दलों की ताकत की बात है तो वह चुनावी परिणामों के आधार पर खुद ही आंकी जा सकती है. 

- इन चुनावों में आप तीसरे दल की भूमिका को किस प्रकार से देखते हैं?

उत्तर: इन चुनावों में तीसरा दल पूरी तरह निष्क्रिय रहा. दो प्रमुख दलों के अलावा अन्य किसी भी दल का कोई भी बड़ा नेता मध्य प्रदेश में अपनी छाप छोड़ने में नाकामयाब रहा. हमने न ही बहुजन समाज को कुछ उत्साही गतिविधि करते देखा न ही आप अपने चिरपरिचित अंदाज में नजर आई. अपना दल पूरी तरह गायब रहा. केवल अखिलेश यादव की अंतिम दिनों की सभाओं को छोड़ दें तो समाजवादी भी छठा बिखेरते नजर नहीं आये. कह सकते हैं तीसरा दल मध्य प्रदेश में किसी भी रूप में खड़ा नहीं नजर आया. 

- एमपी चुनाव 2023 के लिए संभावित नतीजे क्या हो सकते हैं?

उत्तर : करीबी लड़ाई देखने को मिलने वाली है, लेकिन सरकार बनाने में भारतीय जनता पार्टी ही आगे रहने वाली है. मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि 119 के आस पास बीजेपी के विधायक जीतकर आ सकते हैं. हम बीजेपी कांग्रेस में क्रमशः 51-49 फीसदी का रेशियों देख सकते हैं. 

- एमपी चुनाव 2023 में सोशल मीडिया की भूमिका को आप किस प्रकार से देखते हैं?

उत्तर: सिर्फ इन चुनावों में ही नहीं, सोशल मीडिया जीवन के सभी पहलुओं में कई स्तर पर अपनी भूमिका निभा रहा है. आज लगभग सभी गतिविधियां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ही हो रही हैं. चुनावों में भी सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण रोल था. लेकिन इससे चुनावों में महज 4 से 5 फीसदी वोटर ही इधर उधर होते हैं. वोटिंग पैटर्न या मतदाताओं के दृष्टिकोण में इससे बहुत ड्रास्टिक बदलाव देखने को नहीं मिलता है. 

- क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों की एकता, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए कड़ी चुनौती के रूप में साबित हुई है?

उत्तर:  बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का कोई रोल नजर नहीं आया. कहीं नितीश कांग्रेस को सुनाते नजर आये तो कहीं अखिलेश यादव कोसते दिखे. ये विपक्ष की एकता पर भी सवालिया निशान है कि कैसे बिना राज्यों में एक दूसरे का हाथ थामे यह एकता बरक़रार रह सकती है. 

- बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की भूमिका को आप किस प्रकार देखते हैं? क्या उसने अपना सही मार्ग अपनाया है?

उत्तर:  बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं था. बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, 50 फीसदी रिश्वत, पटवारी परीक्षा या पेशाब काण्ड जैसे मुद्दे चुनाव आते आते फीके पड़ चुके थे. जिसे वह पूरी ताकत के साथ न तो खुल के लड़ पाए न ही मुद्दों को खुल कर भुना पाए. ये भी कह सकते हैं कि विपक्ष के वॉर रूम के पास इतनी ताकत नहीं थी कि वह नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे के मुद्दे को भी जमकर उठा पाते. कांग्रेस न ही परीक्षाओं में घोटाले को भुना पाई न ही बीजेपी के बिना चेहरे वाले मुख्यमंत्री की चिंगारी को आग में बदल पाई. क्योंकि कई मौकों पर हमें उन्हें आपस में ही एक दूसरे के कपड़े फाड़ने की बातें करते भी सुना. 

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