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62% लड़कियां और महिलाएं पीरियड्स के दौरान करती हैं कपड़े का इस्तेमाल

भोपाल। जब से अभिनेता अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म ‘पैडमैन” को लेकर चर्चा शुरू हुई है तब से देश में सैनिटरी नैपकीन्स को लेकर भी काफी बातें होने लगी हैं। 9 फरवरी को रिलीज होने जा रही इस फिल्म की कहानी महिलाओं को हर महीने होने वाले माहवारी (पीरियड्स) और उनके स्वास्थ्य पर आधारित है। इसी बीच नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट भी जारी हुई है, जिसमें सैनिटरी नैपकीन्स के उपयोग को लेकर कुछ चौंकने वाले आंकड़े सामने आएं है।

रिपोर्ट के अनुसार देश में आज भी 62% लड़कियां और महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। वहीं ग्रामीण भारत में केवल 48 प्रतिशत महिलाएं तो शहरी क्षेत्रों में केवल 78 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी नैपकीन का उपयोग करती हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत हुए सर्वे के अनुसार बिहार में 82% महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, वहीं उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 81 प्रतिशत का है, जो कि देश में सबसे ज्यादा है। इधर मिजोरम, तमिलनाडु, गोवा, केरल और सिक्किम की महिलाएं पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का सबसे अधिक ध्यान रखती हैं। वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में महिलाएं इस मामले में सबसे पीछे हैं।

सर्वे के खास बिंदु

-15 से 24 आयु वर्ग की महिलाओं को शामिल किया गया था सर्वे में।

-42% महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।

-16 % महिलाएं लोकल तौर पर बनाए गए नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।

– 48% महिलाएं ग्रामीण भारत में सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं।

– 78% शहरी क्षेत्र की महिलाएं स्वच्छता का ध्यान रखते हुए पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन यूज करती हैं।

मप्र की स्थिति राष्ट्रीय औसत से बेहद कम

सर्वे के अनुसार मप्र के शहरी क्षेत्र में 65.4% महिलाएं सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 26.4% है। पूरे प्रदेश की बात की जाए तो 37.6 % महिलाएं सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं, जो राष्ट्रीय औसत से 42% से कम है।

ये है मुख्य वजह

– सैनिटरी नैपकिन को लेकर कम जागरुकता के चलते महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करने को मजबूर हैं।

– सैनिटरी नैपकीन, टैंपून और मेंस्ट्रुअल कप का महंगा होना भी एक कारण है कि महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं।

सर्वे में सामने आए कुछ प्रमुख परिणाम

10 साल में दोगुनी बढ़ी सिजेरियन डिलीवरी

सर्वे की तीसरी रिपोर्ट (2005-06) में सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा 8.5 प्रतिशत था जबकि सर्वे की चौथी रिपोर्ट (2015-16) में सिजेरियन के जरिए 17.2 फीसदी बधाों का जन्म हुआ।

महिलाओं का मानना, पतियों का उन्हें मारना ठीक

सर्वे का सबसे हैरान करने वाला तथ्य यह है कि महिलाएं इस सच को मान बैठी हैं कि पतियों का उन्हें मारना ठीक है। खुद पुरुष भी यह मानते हैं कि ऐसा करना उनका अधिकार है। 52 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वह पति की मार खाती हैं तो 42 फीसदी पुरुष मानते हैं कि वह सही करते हैं, जो अपनी पत्नी को पीटते हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश में हर चौथी महिला घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है।

महिलाओं में 6 गुना बढ़ा कंडोम का इस्तेमाल

सर्वे के मुताबिक, 15 से 49 साल की अविवाहित महिलाएं जो सेक्शुअली एक्टिव हैं उनके बीच पिछले 10 साल में कंडोम का इस्तेमाल 2 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत हो गया है। इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 8 में 3 पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोध महिलाओं की जिम्मेदारी है।

सिख और बौद्ध धर्म की महिलाएं ज्यादा जागरूक

सर्वे में यह भी पता चला कि देश में आधुनिक गर्भनिरोध के तरीकों का इस्तेमाल करने के मामले में 65 प्रतिशत के साथ सिख और बौद्ध धर्म की महिलाएं सबसे आगे हैं, जबकि मुस्लिम महिलाओं का प्रतिशत सिर्फ 38 है।

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