पहली पीढ़ी के उद्यमियों को सशक्त बनाती सथवारो पहल

अदाणी फाउंडेशन की सथवारो पहल कारीगरों के उत्थान में मदद करते हुए भारत की कला और शिल्प कौशल को संरक्षित करने की दिशा में काम कर रही है। "हम तब तक लगभग अदृश्य थे जब तक हमारे काम ने हमारे लिए बोलना शुरू नहीं किया था, या यूं कहें तब तक हमारे पास कोई आवाज नहीं थी।'' ये शब्द तमिलनाडु में पोन्नेरी तालुका की कोट्टईकुप्पम पंचायत में जमीलाबाद के बिस्मी समूह की मुस्लिम महिलाओं के हैं।
इस दक्षिणी राज्य में जमीलाबाद एक छोटा सा गाँव है और मछली पकड़ने वाले मुस्लिम समुदाय का घर है। इस गांव के निवासियों का मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना है। इस समुदाय को उन महीनों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जब मछली पकड़ने पर प्रतिबंध होता है, क्योंकि उनके पास आय का कोई अन्य साधन या स्रोत उपलब्ध नहीं होता है। महिलाएं, जो शायद ही कभी अपने घरों से बाहर निकलती हैं, अपने खाली समय में ताड़ के पत्तों से छोटी-छोटी वस्तुएं बनाती हैं, जिससे उन्हें मुश्किल से ही पैसे मिलते हैं।


हालाँकि, अदाणी फाउंडेशन द्वारा इस क्षेत्र में काम शुरू करने के बाद बदलाव की बयार चलना भी शुरू हो गई है। फाउंडेशन टीम ने बिस्मी महिलाओं की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें जुलाई 2022 में एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाने में मदद की। इसके तुरंत बाद, 14-सदस्यीय समूह की स्किल ट्रेनिंग शुरू हो गई। फाउंडेशन ने आजीविका संवर्धन परियोजना के तहत 70,000 रुपये की सामग्री के रूप में भी समर्थन भी दिया। और देखते ही देखते फुर्तीली उंगलियाँ ताड़ के पत्तों से सुंदर कलाकृतियाँ बनाने लगीं।


फातिमा कहती हैं, "हमें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि हम अपने तटीय गांव में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पत्तियों से शॉपिंग बैग, लंच और चॉकलेट बॉक्स, मैट, ट्रे इत्यादि जैसी चीजें बना सकते हैं।" उत्साहपूर्वक उन्होंने कहा, "जुलाई और सितंबर 2023 के बीच हमने 1,20,000 रुपये कमाए।" एक नए आत्मविश्वास ने बिस्मी महिलाओं को सशक्त बनाने का काम किया है, जो खुश हैं कि वे अपने परिवार की आय में योगदान देने में सक्षम हो सकी हैं। वे अपने गांव में अपना उद्यम शुरू करने वाले पहले व्यक्तियों में हैं।


अदाणी फाउंडेशन अपने साथवारो यानी एक साथ पहल के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप कारीगरों के उत्थान के साथ-साथ भारत की कला और शिल्प की समृद्ध विरासत को भी संरक्षित करने की दिशा में काम कर रहा है। यह कारीगरों को डिजाइन डेवलपमेंट में मदद करता है ताकि वे बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन कर सकें। यह पहल कारीगरों को अपने उत्पाद बेचने में मदद करने के लिए बाजार संपर्क बनाने में भी सहायता प्रदान करती है।
विज्हिंजम में, अब्दुल रेहमान को तब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, जब उनके प्रोडक्ट्स को मार्केट स्टैंडर्ड्स पर खड़ा न उतरने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था। स्कूल छोड़ने के बाद, कोकोनट शेल हेंडीक्राफ्ट व्यवसाय पर उन्हें गर्व था, जिसे उन्होंने खुद बनाया था।

अपने प्रोडक्ट्स के तौर पर वे बरतन, टेबलवेयर, बगीचे और सजावट की लगभग 40 वस्तुएँ बनाते हैं, जिनके बाज़ार में अच्छे दामों पर बिकने की उम्मीद होती है। लेकिन बाजार में प्रतिस्पर्धा तेज होने के कारण इनके प्रोडक्ट्स की चमक जल्द ही फीकी पड़ने लगी। इसके बाद उन्होंने फाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में भाग लेना शुरू कर दिया, जिसने विज्हिंजम पोर्ट क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया था। प्रदर्शनियों में, उन्होंने मार्केटिंग और क्वालिटी कण्ट्रोल के महत्व को सीखा, जिससे उन्हें डिजाइन की सटीकता और एक्सपोर्ट स्टैंडर्ड्स के बराबर क्राफ्ट आइटम्स की क्वालिटी बनाए रखने में मदद मिली। एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के लिए पोर्ट परिसर में आयोजित सथवारो प्रदर्शनी ने नए चैनल खोले, जिससे उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले कोकोनट शेल आइटम का उत्पादन करने के लिए नई ऊर्जा मिली।

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