Maharaja Gulab Singh : एक क्रांतिदृष्टा जननायक जिन्हें भुला दिया..!

Maharaja Gulab Singh : क्या आपको मालूम है..? कि रीमा राज्य के महाराजा गुलाब सिंह ने 1941 में वनवासी गोंड़ों के साथ 'रोटी और बेटी' का संबंध बताते हुए उन्हें क्षत्रियवंश का व अपने बराबरी का होने की घोषणा की थी..।महाराजा गुलाब सिंह ने 1935 में जाति से जुड़ी हलवाही प्रथा और छुआछूत का समापन दशहरे के दिन स्वयं हल चलाकर व उनके साथ सहभोज करके किया था। हरिजनों के लिए मंदिरों के पट खुलवा दिए तथा किसी भी कुएं से पानी भरने की आजादी दी थी। बालविवाह के खिलाफ कड़ा कानून बनाया और विधवा विवाह के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाए।

उन्होंने राज्य में सुधारवादी कदमों के साथ ' पुष्पराजगढ डिक्लेरेशन' जारी किया था..जिसमें राजकाज की भाषा से फारसी अरबी को खारिज करते हुए 'रिमही' भाषा में सभी राजकीय संव्यवहार के आदेश दिए थे। वे स्वयं स्कूल जाकर मेधावी छात्रों का चयन करते व उन्हें वजीफा देकर प्रयाग व बनारस में उच्चशिक्षा का इंतजाम करते।महाराज गुलाब सिंह भारत के पहले ऐसे शासक थे जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही दशहरा 16 अक्टूबर 1945 को ही पूर्ण उत्तरदायित्व शासन की घोषणा कर दी थी।

महाराज गुलाब सिंह ने त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मदद की। उस अधिवेशन से जुड़े सभी प्रस्ताव व दस्तावेज गोपनीय तरीक़े से रीवा('दरबार प्रेस' जहाँ से 'प्रकाश' छपता था) में छपवाए। कांग्रेस के अध्यक्ष पदपर गांधी-पटेल के उम्मीदवार सीता रमैय्या के विरुद्घ नेताजी की बहुचर्चित  जीत पर जबलपुर में जो ऐतिहासिक जुलूस निकला उसके लिए हाथी, घोड़े और रथ महाराज गुलाब सिंह ने भेजे थे।महाराजा गुलाब सिंह के इन क्रांतिकारी निर्णयों को संगीन 'अपराध' बताकर सामंतों ने अँग्रेज शासकों के साथ मिलकर महाराज को देशनिकाला दिलवा दिया था। नेताजी का साथ देने की वजह से वे कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व के निशाने पर थे ही..।

षडयंत्र पूर्वक महाराज गुलाब सिंह को कथित हत्याओं में फँसाया गया और उसके गवाह यही सामंत बने। गुलाब सिंह का साथ देने वाले युवाओं, छात्रों का दमन किया गया और उन्हें जेल भेजा गया। 'राजगद्दी' का लोभ दिखाकर अँग्रेज- सामन्तों- कांग्रेस के नेताओं की तिकड़ी ने महाराज के पुत्र(मार्तण्ड सिंह) व पत्नी को उनके विरुद्ध कर दिया। स्वतंत्र भारत में भी वे अपनी मातृभूमि में आने के लिए तरसते रह गए। जितने बार भी आने की कोशिश की उतनी बार उन्हें स्वतंत्र भारत की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर बाहर भेज दिया, कभी दिल्ली तो कभी देहरादून में नजरबंद करके रखा। अंततः देशनिकाला को अपने नियति मानते हुए वे मुंबई में रहने लगे।1950 में मुंबई निवास में छत से गिरकर उनकी मृत्यु हो गई जो आज भी रहस्य के आवरण में है।

गुलाब सिंह सही मायनों भारतमाता के सच्चे सपूत व महारानी की कोख से महल में जन्मे एक क्रांतिदृष्टा जननायक और महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।आज अगस्त क्रांति दिवस पर  उनके चरणों में मेरा नमन..।।

पुनश्चः फुटनोट

  1. दुर्भाग्य से इस युगदृष्टा महापुरुष का इतिहास नगण्य के बराबर उपलब्ध है। 
  2. उपलब्ध तो है पर साजिशन प्रकाश में नहीं लाने दिया गया..। यहाँ तक कि उनपर गीत, कविताएं, और निबंध लिखे गए सन् 40 से 60 की पीढ़ी के प्रायः हर युवा और छात्र महाराज से प्रेरित थे। रीवा में समाजवादी आंदोलन से जितने युवा जुड़े वे पहले गुलाब सिंह से जुड़े रहे। जगदीश जोशी, बैजनाथ दुबे, सिद्धविनायक द्विवेदी, हरिशंकर सक्सेना, रामायण प्रसाद पान्डेय, जनार्दन पांडे चन्द्रप्रताप तिवारी, गिरजा प्रसाद मिश्र, डाक्टर जगन्नाथ शुक्ल, मुनिप्रसाद शुक्ल और भी ऐसे कई यशस्वी नाम हैं जिन्हें गुलाब सिंह जी ने वजीफा देकर प्रयाग, बनारस, कलकत्ता में उच्चशिक्षा दिलवाई व हर तरीक़े से मदद की। महाराज के निर्वासन के विरोध में जगदीश जोशी की लिखी कविता 'नेता गुलाब' बहुत चर्चित रही। सरकार-कांग्रेस और सामंत महाराज के जानी दुश्मन थे और यही लोग सत्ता में, सो इसलिए यह प्रचारित करवाया कि महाराज ने खुद कई हत्याएं की व करवाईं, वे बहुत कंजूस थे, लगान व अन्य वसूली अपने खाते में जमा कराते थे..आदि आदि..। लेकिन आम जनता उन्हें अपना मसीहा मानती थी। समाजसुधार के क्रांतिकारी कार्यक्रम उन्होंने 1936 में शुरू किए थे जिसके बारे में अब सरकारें सोचा करती हैं। महाराज गुलाब सिंह क्रांतिकारी, प्रगतिशील जननायक थे।
  3. अगर आजादी के बाद  श्रद्धेय महाराजा साहब गुलाब सिंह जी स्वतंत्र रुप से  रिमही जनता का नेतृत्व करने के लिए उपलब्ध होते तो,  शायद प्रदेश, देश के राजनीति की दिशा व दशा कुछ और होती ,लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। Rajendra Baghel
  4. मालूम होना चाहिए कि महाराज को रीमाराज्य के  सामंतों..कांग्रेसियों..के कहने पर  सरकार ने निर्वासित किया..इस षडयंत्र में राजकुमार मार्तण्ड सिंह व महारानी को भी शामिल किया। 1947 के बाद महाराज गुलाब सिंह ने चार बार रीवा आने की कोशिश की, आए भी लेकिन दूसरे दिन ही गिरफ्तार करके रीवा राज्य से बाहर ले जाकर नजरबंद कर दिया गया। उनके पक्ष में सिर्फ समाजवादी युवा और रिमही जनता थी। विन्ध्यप्रदेश के तत्कालीन मंत्री - मिनिस्टरों का वश चलता तो महाराज गुलाब सिंह को खुद ही फाँसी पर लटका देते। महाराज के खिलाफ हत्या के चार मामले दर्ज कराए गए थे..जबकि ये संदिग्ध मौतें थीं। फर्जी गवाह खड़े किए गए और इंदौर की रेसीडेंसी कोठी में इनपर मुकदमा चला..। पूरे मुकदमे की प्रोसीडिंग्स आज भी कई महानुभावों के पास है, मेरे संदर्भ में भी।

लेखक - स्मरण/जयराम शुक्ल

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