कांग्रेस के इस गढ़ में अब तक भाजपा नहीं लगा पायी सेंध, ये है फैक्ट!

राघौगढ़। मध्यप्रदेश राघौगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस का सबसे बड़ा गढ़ है जहां भाजपा की अबतक एक न चली। भाजपा को कई बार चुनौती मिली और भाजपा ने तमाम कोशिशें की। चुनाव दर चुनाव नए नए प्रयोग भी किए, लेकिन कांग्रेस के गढ़ में सेंध नहीं लगा पाई। भाजपा ने 2003 के चुनाव में तुरुप के इक्के के तौर पर अपने सबसे बड़े नेता शिवराजसिंह चौहान को भी उतारा, लेकिन भाजपा जीत के मुहाने तक नहीं पहुंच सकी।

पिछले चुनाव में तो कांग्रेस के जयवर्धन सिंह ने भाजपा के राधेश्याम धाकड़ को 58 हजार 204 मतों के भारी अंतर से हराकर रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस बार राघौगढ़ में कांग्रेस किले का तिलिस्म तोड़ने भाजपा को एक बार फिर किसी जमीन से जुड़े नेता की तलाश है। राघौगढ़ विधानसभा सीट पर किले का गहरा प्रभाव है। यहां का मतदाता कहीं न कहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह और वर्तमान विधायक जयवर्धन सिंह से जुड़ा हुआ है।

इसी का नतीजा है कि उक्त सीट कांग्रेस के कब्जे से बाहर नहीं जा सकी है। इधर, भाजपा की सीट हथियाने के लिए कोशिशें लगातार जारी हैं। लेकिन राघौगढ़ ऐसी सीट है, जहां हर वर्ग का मतदाता जीत-हार में अपनी भूमिका निभाता रहा है, जिसे किसी एक वर्ग को साधकर चुनाव जीतना भी मुश्किल होता है।

फैक्ट फाइल - 2013 का परिणाम 

जयवर्धन सिंह - कांग्रेस 98041

राधेश्याम धाकड़ - भाजपा 39837

राजेश धाकड़ - बसपा 3632

पिछले चुनावों में मिले वोट -

पार्टी - 2008 2003

कांग्रेस - 43.61 53.95

भाजपा - 35.23 34.34

बसपा - 8.45 - (वोट प्रतिशत में )

जातीय समीकरण -

अनुसूचित जाति लगभग 33 हजार, धाकड़ 29 हजार, यादव 25 हजार, ब्राह्मण 18 हजार, मीना 15 हजार और शेष अन्य मतदाता।

2018 में संभावित प्रत्याशी -

राधेश्याम धाकड़ के अलावा भी जमीनी नेता की तलाश भाजपा कांग्रेस जयवर्धन सिंह के अलावा किसी और का नाम चर्चा में नहीं ।

(तीसरे दल के रूप में बसपा उम्मीदवारी जता सकती है)

क्षेत्र की बड़ी समस्याएं -

खिलाड़ियों को आज भी सर्वसुविधायुक्त स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स की दरकार है। राघौगढ़ में कन्या विद्यालय के लिए अलग बिल्डिंग भी नहीं मिल सकी है। गेल- एनएफएल के अलावा रोजगार के अवसर विकसित नहीं हो सके हैं। इसके चलते युवा नशे व जुआ-सट्टे की गिरफ्त में है।

पांच बड़े वादे और स्थिति -

विधायक जयवर्धन सिंह ने मूलभूत सुविधाओं पर ज्यादा जोर दिया था। इसी आधार पर बिजली की समस्या से जूझ रहे गांवों में एक सैकड़ा से अधिक डीपी रखवाई गईं तो सहरोक और आंकखेड़ा में सब स्टेशन मंजूर कराया गया। आईटीआई संस्थान से युवाओं को तकनीकी शिक्षा दिलाकर रोजगार से जोड़ा जा रहा है।

वर्तमान में मैदानी स्थिति -

किले को टक्कर देने के लिए भाजपा को है जमीनी नेता की तलाश -

जिले की राघौगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस के कब्जे में रही है। यहां भाजपा के सामने सबसे बड़ा संकट उम्मीदवार का रहा है क्योंकि, इस सीट से किले का या समर्थक ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में रहा है। ऐसे में भाजपा को हर चुनाव में किले को टक्कर देने वाले उम्मीदवार की तलाश रही है। इसके लिए हर चुनाव में भाजपा कभी आयातित तो कभी स्थानीय नेताओं पर दांव लगाती रही है। आगामी चुनाव में भी भाजपा को जमीनी नेता की तलाश होगी, जो मजबूती के साथ चुनावी मैदान में चुनौती दे सके।

 

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