पुष्य नक्षत्र में बने इस मंदिर की अनोखी मान्यता, सावन माह में लगा रहता है शिव भक्तों का तांता 

सौरभ द्विवेदी/उदयपुर : सावन सोमवार देवों के देव महादेव का सबसे प्रिय महीना होता है. जिसकी शुरुआत 22 जुलाई 2024 से हो गई है. सावन के पहले दिन ही सावन का पहला सोमवार भी रहा . इसके साथ ही सावन की समाप्ति भी सोमवार के दिन ही होगी. सावन माह में हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जो पुष्य नक्षत्र में बना है. भोपाल से मात्र 3 घंटे की दूरी पर विदिशा के गंज बसौदा तहसील के उदयपुर गांव में स्थित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर को बनाने में 24 वर्षों का समय लगा. मंदिर का आर्किटेक्ट इतना खास और आकर्षक है की इस से नजर ही नहीं हटेगी.मंदिर के पुजारी नवीनकृष्ण शास्त्री ने कहा कि परमारवंशी राजा भोज के वंशज राजा उदयादित्य के जन्म के बाद धार नगरी के राजा वीर सिंह ने बनवाया था. वह यहां से निकलकर उज्जैन जा रहे थे. उदयपुर में उनका एक पड़ाव हुआ, जहां वह विश्राम करने रुक गए, तभी भोलेनाथ ने स्वप्न में आकर कहा कि यदि वह यहां शिवालय का निर्माण करवा देता है तो जिस कार्य से काशी जा रहा है वो यहीं हो जाएगा.

गांव का पहले भृंगराजपुर था नाम

उदयपुर गांव का नाम पहले भृंगराजपुर था, जिस पर भील-गोंड राजाओं का राज था. आज भी यहां स्थित पहाड़ों पर उनके किलों के अंश देखने को मिलते है. राजा वीर सिंह ने अपने गुरुओं से यहां मंदिर बनाने की बात कही, जिस पर उनके गुरुओं ने मना करते हुए काशी जाने को कहा. इसके बाद राजा ने भी काशी जाने की जिद ठान ली. चूंकि उस समय काफी विलंब हो गया था. इसलिए उन्हें एक रात और वही विश्राम करना पड़ा. अगले दिन सुबह जब राजा काशी के लिए प्रस्थान कर रहे थे. स्वयं भोलेनाथ भेष बदलकर वहां पहुंचे।

उदयपुर में शिवालय का निर्माण कराया

भोलेनाथ ने राजा से कहा कि वह यहीं पर शिवालय का निर्माण करवाए. जिससे उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी. राजा ने कहा कि मैं नि:संतान हूं और सारा राज पाठ छोड़कर काशी जा रहा हूं। भोलेनाथ ने राजा के स्वप्न में आकर कहा की उसे जल्द ही एक वैभवशाली पुत्र की प्राप्ति होगी। 

राजा को हुई थी पुत्र रत्न की प्राप्ति

राजा वीर सिंह नि:संतान थे. लेकिन भोलेनाथ के आशीर्वाद से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है. जिसका नाम उदयादित्य रखा. कहा जाता है कि यह मंदिर एक ही नक्षत्र में बना है। हिंदू मान्यता के अनुसार कुल 27 नक्षत्र होते हैं। 26 नक्षत्र में पत्थरों को बनाया जाता था। 27वें दिन पुष्य नक्षत्र में उसे मंदिर में लगाया जाता था। मंदिर को बनाने में कुल 24 वर्षों का समय लगा, इसके बाद राजा ने अपने बेटे उदयादित्य के नाम के अनुसार इस गांव का नाम उदयपुर रखा. मंदिर का नाम उदयेश्वर नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर और यहां स्थित तालाब का नाम उदय सागर तालाब रखा। 

सावन माह एवं महाशिवरात्री पर बड़ी संख्या में पहुंचते श्रद्धालु

सावन सोमवार के महीने में उदयपुर स्थित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।वहीं महाशिवरात्रि पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।मुगल काल के समय मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। जिसे साल 1929 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने इसका जीर्णोधार करवाया था।

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