बिछड़ा परिवार हो गया एक, मंदसौर प्रधान न्यायाधीश, कुटुम्ब न्यायालय द्वारा मध्यस्थता

मंदसौर/आदित्य शर्मा।  राष्ट्रीय लोक अदालत खण्डपीठ क्र.18 में विगत कई वर्षों से बिछड़ा हुआ परिवार एक हुआ, जब गंगाचरण दुबे, प्रधान न्यायाधीश, कुटुम्ब न्यायालय द्वारा मध्यस्थता कर रूठी हुई पत्नी को उसके पसंदीदा वाहन पर्पल स्कूटी पर बिठवाकर घुमवाया और वाहन का नामांतरण पत्नी के नाम कराकर उसे वाहन स्वामिनी बनवाया, तो नाराज घर छोड़कर गई पत्नी अपना गुस्सा छोड़कर पति के साथ जाने को तैयार हो गई और बिछड़ा परिवार एक हो गया।

घटना यह है कि मनोज की शादी प्रज्ञा (परिवर्तित नाम) के साथ दिनांक 29.04.2021 को हिन्दू रीति-रिवाज से जीवन जिला नीमच में सम्पन्न हुई, दोनों के दाम्पतय से एक पुत्री प्रज्ञा के मायके में उत्पन्न हुई। जब मनोज उसे लेने गांव गया, तो उसकी पत्नी के परिजनों ने अभद्र व्यवहार व गाली-गलौच कर अपमानित किया और अभद्र व्यवहार कर भगा दिया। अनेकों प्रयासों के बाद पत्नी विवाद समाप्त कर नहीं आई और मनोज को दाम्पत्य सुखों से वंचित कर दिया, दोनों के मध्य विवाद इतना बढ़ा कि बात तलाक तक जा पहुंची। मनोज ने दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना और तलाक की याचिका प्रस्तुत कर दी।

न्यायालय ने राष्ट्रीय लोक अदालत के अवसर पर जब प्रधान न्यायाधीश गंगाचरण दुबे, कुटुम्ब न्यायालय ने पति-पत्नी से संवाद किया तो ज्ञात हुआ कि वास्तविक विवाद क्रूरता या पत्नी के परित्याग अथवा जारता की स्थिति में रहने का नहीं है, अपितु पति-पत्नी एक वस्त्र विक्रेता की दुकान पर कार्य करते थे और दोनों ने अपने मासिक वेतन से एक पर्पल रंग की स्कूटी क्रय की थी। पत्नी गृह कार्य करते हुए दुकान पर काम से जाने में विलम्बित होती थी और पति मनोज स्कूटी लेकर अकेला काम पर पहुंच जाता था। पत्नी या तो पैदल या अन्य साधन से अपने कार्यस्थल पर उपस्थित होती थी, इसी विवाद के चलते वह नाराज होकर अपने मायके चली गई और उसने मनोज के साथ आने से मना कर दिया।

समझौतावार्ता के दौरान प्रधान न्यायाधीश गंगाचरण दुबे कुटुम्ब न्यायालय ने पूछा कि वाहन का रंग किसके द्वारा पसंद किया गया था, पत्नी की पसंद से लिए गए वाहन का तथ्य अवगत करने पर न्यायाधीश द्वारा नाराज पत्नी को पर्पल स्कूटी पर सवारी करने हेतु शहर भेजा गया और यह भी यह भी सुझाव दिया गया कि यदि वाहन का नामांतरण, पत्नी के नाम पर करा दिया जाए तो इस पर पत्नी प्रज्ञा सहर्ष स्वीकार रही तथा वाहन सवारी तथा नामांतरण के प्रपत्र फार्म नं. 29-30 न्यायालय में प्रस्तुत होने पर नाराज पत्नी अपने पति के साथ जाने को तैयार हुई और राष्ट्रीय लोक अदालत में उन्होंने प्रकरण समाप्त कराकर अपने दाम्पत्य को पुनर्स्थापित करा लिया। मामले में प्रज्ञा की ओर से इस्माईल मंसूरी और मनोज की ओर से घनश्याम गुजराती अधिवक्ताओं ने न्यायमित्र के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की।

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